मंगलवार, 8 नवंबर 2011

किलर के एक ही झपाटे ने बड़े बड़े भड़ासियों को बनाया चिलरन

प्यारे पयारे ब्लॉगर बंधुओं,


ज़ील का झपाटे से प्रेम प्रसंग उजागर होने के बाद झपाटे से जलन रखने वालों की तादाद में भारी इजाफ़ा हुआ है। दिवस, मुनेन्द्र, दीनबन्धु, अमित, हिजड़ा झोलाछाप रुप्पू रूपेश इतिश्री वास्तव, हिजड़ा मनीषा, यूसलैस अनूप मंडल, और खरदूषण जैसे नामी गिरामी योद्धाओं ने किलर झपाटे पर नाना प्रकार के वार किये। मगर सबके सब भोथरे साबित हुए। इस महान पहलवान के किसी भी दाँव का उचित प्रत्युत्तर देने के बजाय इन्होंने उसे गूगल भर में खोजते रहने, कि ये कौन है ? कहाँ का है ? बड़े शहर का है ? छोटे शहर का है ? और उसकी शानदार अँग्रेजी पर प्रश्नचिन्ह लगाते रहने के अलावा कोई तीर नहीं मारा। इंग्लिश में रूपेश एण्ड कम्पनी बहुत कमजोर समझ में आ रही है। क्या करें इन बेचारों के माँ-बाप ने पढ़ाने की कोशिशें तो बहुत की लेकिन इन महामूर्खों को वाहियात बातों से फ़ुरसत मिले तब ना। पहले एक एक जने मोर्चा संभालते रहे फिर बात न बनी और पिछ्वाड़े मार खा खा कर सूज गये तो सबके सब इकट्ठे चढ़ दौड़े झपाटे को अभिमन्यू समझ कर मगर गलती से वो भीम निकल गया। हा हा। अब इन लैंगिक विकलांग्स को भागते गली नहीं मिल रही भायखला की। हर तरह से पिटे झपाटे से और उसके सामने ये अपने मुँह मियाँ मिट्ठू भड़ासी, चिलरन (बच्चे) साबित हुए। झपाटे का नाम यू आर एल में डाल कर यहाँ वहाँ छ्द्म रूप से उल्टी सीधी टिप्पणियाँ करके जीत की खुशी मनाने वाले जल्द ही हैरत में पड़ेंगे जब कोई इनके नाम यू आर एल में डालकर  पूरे ब्लॉगजगत में अश्लील टिप्पणियाँ करके आ जायेगा। हा हा। आय विल नॉट बि रिस्पॉन्सिबिल फ़ार द कॉन्सीक्वेन्सेस दैन।
एक ही बात का दुख है यार मगर झपाटे को। वो ये कि भड़ास जैसे नामचीन ब्लॉग पर इन लैंगिक कम मानसिक विक्लांग्स का कब्जा है।


है है झड़ी हुई भड़ास।    

शुक्रवार, 4 नवंबर 2011

किलर झपाटे पर मर मिटी बेचारी दिव्या ज़ील

जी हाँ, फ़लानों और ढिकानों,

आप सबको अत्यंत दुख के साथ सूचित किया जाता है कि हमारे ब्लॉग-जगत की एकमात्र लौह महिला (जंग खाई हुई) डॉ. दिव्या ज़ील अपने सबसे प्रिय ब्लॉगर किलर झपाटे के प्यार में पागल होकर उन पर मर मिटीं और ब्लॉगजगत से इंतकाल फ़रमा गईं। यह समाचार ज़ील जी के ब्लॉग पर कल ही प्रकाशित हुआ था। खबर जंगल में आग की तरह फ़ैल गई। श्रद्दांजलियों का ढेर लग गया है। बहुत दुख की बात है कि उनका दिल भी आया तो इस जुल्मी किलर झपाटे पर। दुष्ट कहीं का। ज़ील की मोहब्बत को समझ नहीं सका। ऐसे तो कई अन्य ब्लॉगरों ने भी ज़ील के दिल को जीतने की कोशिशें की थीं लेकिन वे सभी लौह महिला के शब्द प्रहारों को बरदाश्त न कर पाने के कारण उन्हें अपनी बहन बना बैठते थे। कोई दीदी तो कोई छोटी बहन। जबकि वे तो टेस्ट करने के लिये प्रहार करती थीं कि ये असली मर्द है भी कि नहीं ? च च च कोई ना मिला। चलिये कोई बात नहीं। इस चक्कर में ज़ील के पास नामरद भाइयों की फ़ौज तो तैयार हो ही गई। छोड़िये।
अब आप लोग तो सब कुछ जानते ही हैं ना कि स्त्री के दिल की थाह कोई पा सका है भला ? पाजी किलर झपाटा ! हाँ नहीं तो, वार पर वार सहता गया और वार पर वार करता भी गया। इतना भी ना समझ सका कि ऐसे में ज़ील के दिल में उसके जैसे जानदार मर्द के प्रति अचानक ही प्यार पनप जायेगा और  ..........हटाइये अब बात करके क्या फ़ायदा ? वो तो चली गईं कभी लौट कर ना आने के लिये। अब घूमते रहना बेट्टा झपाटे विरह में।  जब वो खाली झूले पर भूतनी बनकर तेरे घर में रात में रोज बारह बजे गाना गायेगी ना सफ़ेद साड़ी पहन कर, बीस साल बाद तक और उस समय तक अपनी प्यारी बहन के गम में झाड़फ़ूँक स्पै‍शलिस्ट झोलाछाप डॉक्टर रुपेश (इन्हें आदमीयों तक को बहन बनाने का शौक है क्योंकि ये भड़ास पर मुझे बहन जी बहनजी कह रहे हैं बार बार ज़ील की मौत के गम में)  जा चुके होंगे हम सब को छोड़कर, तब पूछेंगे कि देख लिया ना ज़ील के प्यार को ठुकराने का नतीजा ?

भगवान ज़ील की प्रीतात्मा (नॉट प्रेतात्मा अण्डर्स्टुड यू नॉटी ब्रदर्स ऑफ़ ज़ील) को शांति प्रदान करे और ............२ मिनट का मौन रखेंगे सब लोग।

सोमवार, 24 अक्टूबर 2011

साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को कसाब और अफ़ज़ल गुरू के साथ ही फ़ाँसी पर लटकाया जाना चाहिए ?

इंसान को इंसान की हत्या का हक होना ही नहीं चाहिये। ये काम सिर्फ़ भगवान का ही है। प्रज्ञा ने एक तो क्षत्रिय होते हुए ब्राह्मणत्व का स्वाँग किया। दूजे उन्होंने मालेगाँव में बम ब्लास्ट को अंजाम दिया। ऐसा सकारी इल्जाम है। यदि वे षडयंत्र में शामिल थीं तब लॉ ऑफ़ द लैंड के तहत उन पर कार्यवाही होनी ही चाहिये अदरवाइज़ । मोरओवर अफ़ज़ल गुरू वगैरह जरा कॉम्प्लीकेटेड मैटर हैं। आम लोगों की समझ के परे। रही बात गोड़से  नथूराम की तो वो भाईसाहब द्वारा की गई ब्लंडर का नतीजा हिंदूवादीज़ आर स्टिल सफ़रिंग। यार नत्थू, तुमने गाँधी की जगह जिन्ना को क्यों नहीं मार दिया ? ससुरा पाकिस्तान का झंझट ही ना मचता। एम आय राँग ?

गाँधीजी वॉज़ बहुत महान। उनके बारे में ऊलजलूल विचार लिखकर उन्हें कभी भी अपमानित ना होने देंना चाहिये।
......एक बात और

माता भवानी की आड़ में हमें हिंसा का झाड़ लगाने की ना तो हिमाकत करनी चाहिए और ना ही उनके नाम से किसी को डराना चाहिये। ये बहुत ही गन्दी हैबिट कहलाती है। आपसी मतभेद बातचीत वैचारिक चर्चाओं के बीच में भगवान से इस तरह रिलेशन दर्शाना जैसे वो इन्हीं के रिश्तेदार हैं और सामने वाले का उनसे कोई रिलेशन ही नहीं है। हा हा, ऐसे लोग बुद्दू कहलाते हैं। ए दुनिया वालों क्रोध, खून जलाने से अलावा और कुछ नहीं कर सकता, नीचे खड़े सॉरी अण्डर्स्टुड ? एक एक (दिवस) कीमती है भाई। इसका (रूप) एक दूसरे से (zealsy) जलन- और वाकयुद्ध में नहीं बिगाड़ना चाहिये, आय थिंक। हर समय खोंखियाये साँड की तरह दुनिया भर को लाल कपड़ा समझ कर उस पर फ़ालतू में भड़ास नहीं निकालते रहना चाहिये। ये कुछ ब्लॉग टिप्स हैं जो मैने सोचा आप सभी से शेयर कर लूँ, आँग्लभाषा के फ़्यूज़न के साथ में। हा हा। जय जय झपाट। 

सोमवार, 17 अक्टूबर 2011

ज़ील (दिव्या) के ब्लॉग पर डरपोंक बनावटी देशभक्तों की कुश्ती ......किलर झपाटे के साथ


मेरे प्यारे दोस्तों,
आप सबको किलर झपाटे का सादर सप्रेम नमस्कार। आगे समाचार ये है कि परम आदरणीया मैडम दिव्या (ज़ील) के ब्लॉग पर पिछले दो दिनों से बहुत ही क्रोधी मगर अत्यंत डरपोंक किस्म के देशभक्त ब्लॉगरों का सम्मेलन चल रहा है। इनके ब्लॉग की ये विशेषता है कि यहाँ बहुत ही वाहियात किस्म के समसामयिक मुद्दे उठाए जाते हैं और उन पर एकतरफ़ा बहस ऑर्गेनाइज़ की जाती है। मजे की बात ये है कि, यदि आप इनके पक्ष में बोलें तो तत्काल आपकी टिप्पणी को तारीफ़ और प्रतिसाद मिलेगा। और यदि विपक्ष में बोलें तो लोग आपको ड्ण्डे मारने को तत्पर नजर आएंगे। बल्कि मारेंगे भी। अच्छा एक और बात है कि ये ज़ील मैडम जो कि दर‍असल एक मर्द हैं वे जबरन में औरत होने का स्वाँग रचे रहती हैं, ताकि लोगों पर अपने घड़ियाली आँसूओं का रौब डालकर उन्हें डरा सकें। अब गाहे बगाहे मैं भी अपने ब्लॉगरीय अधिकार के तहत इनके यहाँ चला गया और शिष्टाचारवश कोई टिप्प्णी कर दी तो समझिये कि बस हो गया हँगामा। मैं तो सबसे इज्जत से आप आप करके बात करता हूँ और इनके यहाँ के टिप्पणीकार मुझसे तू-तड़ाक करने लगते हैं। मैं उनकी बात का जवाब आप आप से ही देता हूँ, तो वे गाली गलौज तक करने लग जाते हैं। अब आप लोग तो जानते ही हैं कि मेरा तो दिल ही कुछ ऐसा है कि मैं किसी बात का बुरा नहीं मानता और रिप्लाई का रिप्लाई अदब के साथ देता ही जाता हूँ। उसमें ये मैडम ज़ील और उनकी टीम मुझसे इतना खुड़ जाते हैं कि मेरे बारे में खुद की टिप्पणीयाँ तो प्रकाशित करते जाते हैं और मेरा जवाब छापने पर इनकी हवा खिसक जाती है। एक कोई बहुत ही बड़े देशभक्त बेटे भी हैं भाई, मदर इंडिया बनी हुई जील मैडम के। अरे बापरे उनका गुस्सा नाक से बना है या नाक गुस्से से बनी है, यू काण्ट मेक आऊट। नाम है ईंजीनियर दिवस। मेरी बात का इन्हें जब कोई जवाब नहीं सूझता तो ये मगरमच्छ के आँसू बहुत सुन्दर ढंग से रोते हुए मम्मा ज़ील के पहलू में छुप जाते हैं और वहाँ से मॉडरेशन ऑन करवाकर उसकी आड़ में मुझे गरियाते हैं। गोइंग ग्रेट बेबी। और तो और जब इस पर भी बात नहीं बनती तो अचानक कहीं से डॉ. रूपेश श्रीवास्तव नामक सेक्स ब्लाईंड शख्स जो दर‍असल ज़ील ही हैं, मुझे ID वगैरह पहचानने की धमकी देते हुए बड़े ही दार्शनिक अंदाज में अपनी बेपेंदी की बकवास कर डरके मारे टिप्पणी मॉडरेशन के बिल में घुस जाते हैं। इनका नाम नए इतिहास में मॉडरेशन चूहा के नाम से मुतहरे अक्षरों में दर्ज किया जावेगा।
देखिए ज़ील के ब्लॉग पर मेरे साथ इस टिप्पणी घमासान के कुछ नमूने इसमें मेरी वे टिप्पणियाँ भी हैं जिन्हें इन भीरुओं ने भयवश छापने की हिम्मत ही नहीं दिखाई। हा हा। नाऊ एन्जाय योरसेल्फ़ मित्रों :-
Neeraj Rohilla said...
प्रशान्त भूषण ने जो भी कहा लोकतन्त्र के दायरे में रहकर कहा। उससे सहमत अथवा असहमत हुआ जा सकता है लेकिन केवल उस विचार से असहमति किसी को ये अधिकार नहीं देती कि आप खुले आम हिंसा पर उतर आयें। इस प्रकार की हिंसा की जिस प्रकार आपने अपने ब्लाग पर प्रशंसा की है चिंताजनक है। इस प्रकार की प्रवत्ति पर लगाम लगनी चाहिये, विरोध प्रकट करने के और भी तरीके हैं। आभार
Er. Diwas Dinesh Gaur said...
@नीरज रोहिल्ला
भाईसाहब कृपया उपदेश न दें, कोई और तरीका हो तो वह बताएं| हमे तो यही तरीका पता था सो इसका समर्थन करते हैं|
दूसरी बात, यदि कोई हमारे देश को तोड़ने की बात करे और हम चुपचाप सुनते रहें तो इससे बड़ी अनैतिकता क्या हो सकती है? क्या आपका यह वक्तव्य वीरता की श्रेणी में रखा जा सकता है?
जब स्वघोषित मसीहा टीम अन्ना का कोई सदस्य ऐसा बचकाना बयान देगा तो इसकी जिम्मेदारी अधिक होती है| जिसे उद्धारक समझा जा रहा है, जब वही देश तोड़ने की बात कहे तो बताइये जनता किस पर विश्वास करे? यह सरासर जनता के विश्वास पर वार है, इसकी सजा बहुत गंभीर होनी चाहिए|
मेरी पिछली टिपण्णी देखिये और बताइये कि क्या महारानाप्रताप भी गलत थे?
किलर झपाटा said...
प्रशांत-भूषण ने एकदम सही कहा है। आपको कुछ समझ वमझ में आता नहीं और लगीं हैं ऊटपटांग बातें करने। किसी को भी गद्दार वद्दार नहीं बोलना चाहिए एकदम से। दिस इज़ वैरी बैड ज़ील जी। और ये सबके सब ऊपर, जो आपके सुर में सुर मिला रहे हैं, गंदे विचारों वाले हैं ये लोग।
Er. Diwas Dinesh Gaur said...
@किलर झपाटा
भाई/बहन/Whatever, एक झपट्टा भूषण पर पड़ चूका है, इसे भूलना मत| देशद्रोही बयान देना तो गुनाह है ही, उसका समर्थन करना भी राष्ट्रद्रोह की श्रेणी में आता है| कश्मीर को भारत से अलग करने का बयान राष्ट्रद्रोही बयान है| इसमें क्या ठीक लगा आपको? क्या आप कश्मीर को भारत से तोडना चाहते है? यदि ऐसा है तो तू एक पाकिस्तानी है| हमारा देश क्यों सड़ा रहा है, जाकर घुस पाकिस्तान में|
अगर हमे समझ वमझ नहीं आता तो समझा दे| लेकिन देश को तोड़ने की बात मत कहना|
पहली बार मुखातिब होने का मौका मिला है| कितनी भी पहलवानी करता हो, बोलने से पहले सोच लेना चाहिए|
अभी के लिए इतना ही, आगे कुछ कहना हो तो इस परिपेक्ष्य को ध्यान में रख लेना|
किलर झपाटा said...
हमारा देश और इसके वासी मुग़ालता पालने में एकदम मास्टर हैं। भैया कश्मीर भारत का अभिन्न अंग बोलने भर से हो जाता है क्या ? ओय तथाकथित देशभक्तों। ये घर में चिटपिटी टिकली फोड़ने की जगह अनुच्छेद ३७० को तो पहले खत्म करा के बता दो। बात करते हो, हम राम सेना हैं हम फ़लानी सेना है। राम सेना के एक भी सैनिक के बराबर एक भी गुन नहीं है इन सभी में जो थपड़ा थपड़ी करते रहते हैं। जमानत होने के पहले जेल के बाहर और जेल में कितना पिटे होंगे जरा पूछ लेना उनसे। इनको कुन्दन कहते हैं आप और प्रशांत देशद्रोही। वाह वाह अच्छा डिफ़ाइन किए भैया। इसी किस्म की बेवकूफ़ियों ने देश को गुलाम बनाए रखा इतने दिनों। वोट डालते समय दोगे भ्रष्टों को और सच बोलने पर पीटोगे शिष्टों को। सुधार करना है तो इस किस्म की समस्याओं को जड़ से खत्म करने में दिमाग लगाओ। ये चनकटाई करने से कुछ बदलने वाला नहीं अण्डरस्टुड। जय हिन्द।
किलर झपाटा said...
जब जिन्ना, गाँधी, नेहरू, काँग्रेस और बरतानिया सरकार ने देश तोड़ा था, तब आपके दादा जी या नानाजी या और रिश्तेदारों ने क्या कर लिया था ? कुछ आप कर रहे हैं। चीन आँखें दिखा रहा है क्या कर पा रहे हैं, जरा बतलाइये तो ? मुझे पाकिस्तानी बतला रहे हैं आप। वैरी स्ट्रेंज। हा हा।  अभी आपकी हमारी मुलाकात नई नई है इंजीनियर साहब। जब ठीक से मिल लेंगे तब न चाहते हुए भी आप हमारे नियर आ जायेंगे। अरे ये पहलवान जब भी बोलता सोच-समझ कर ही बोलता है, मैन। बल्कि हम जो बोलता, पब्लिक उसी को सोचने लगता। एम आय राँग दोस्तों ? टैल दिस बेबी, दिवस। ही इज़ गैटिंग एंग्री ऑन मी !
shilpa mehta said...
@ किलर झपाटा जी
मैं आज दो तीन पोस्ट्स पर ( इसी विषय की ) एक ही बात लिख आई हूँ - कि जब प्रशांत भूषण जी स्वयं ही सब बातों के निर्णय "जनमत संग्रह" द्वारा ही कराना चाहते हैं - तो फिर उन्होंने जो कहा - उस पर उनके साथ अच्छा व्यवहार हो या बुरा - फूलों की मालाएं पहनाई जाएँ या जूतों की ? इस पर constitutional decision की ज़रुरत क्या है ?
जनमत संग्रह ही किया जाना चाहिए ना - कि उन जैसे बयान देने वालों के साथ क्या हो ? मुझे तो यही लगता है कि यदि ऐसा जनमत संग्रह किया जाए - तो उनके ही तरीके से उनका सही निर्णय हो जाएगा ... और यह कोई hung jury नहीं बल्कि clear cut रिजल्ट होगा - देख लीजियेगा !!!! किन्तु इसमें संविधान की आड़ ले कर छुपने का प्राविधान नहीं होना चाहिए !!! क्या आपको ऐसा नहीं लगता ?

Er. Diwas Dinesh Gaur said...
@किलर झपाटा
कश्मीर में धारा ३७० लागू है, जिन्ना, नेहरु, गांधी, कांग्रेस, ब्रिटेन ने देश तोडा था, चीन आँखें दिखा रहा है तो क्या इसका मतलब यह हो गया कि जब तक यह सब ठीक नहीं हो जाता तब तक देश तोड़क बयानबाजी कर टाइम पास करें? ठीक है, इन सबके लिए लड़ना चाहिए, लेकिन यह क्या मतलब हुआ कि तब तक देश को तोड़ने वाले बयानों का समर्थन करलो और इनका विरोध करने वालों को बेवकूफ समझ लो?
कुछ अक्ल है या पहलवानी करके मोथा हुआ जा रहा है? या फिर अक्ल बेच कर मक्खन खा रहा है?
@ किलर झपाटा ,
तुम कौन हो क्या हो ये तो तुम ही जानो लेकिन एक बात तुम्हारी जानकारी के लिये बता दूँ कि किसी भी देश को राष्ट्र बनने की स्थिति तक आने और ऐतिहासिक गलतियों को सुधारने में जितना समय लगता है उस लिहाज से पैंसठ साल तो शैशव काल है। हमारी सभ्यता हजारों साल पुरानी रही है उस सभ्यता और संस्कृति को संविधान तक लाने में समय लगेगा हम सब अपने अपने स्तर पर प्रयास कर रहे हैं तुमने अब तक क्या क्या करा है गिनाओ ताकि हम तुम्हारा धन्यवाद कर सकें राष्ट्रहित में ।
संजय कटारनवरे
मुंबई
जय जय भड़ास
किलर झपाटा said...
आदरणीय शिल्पा जी,
हमको तो बहुत कुछ लगता है, पर लगता है कि इन तथाकथित देशभक्तों को कुछ भी नहीं लगता है। जिस संविधान की बात आप कर रही हैं क्या वो सबको मान्य था उन दिनों, और या के अभी भी ? कितने हिन्दू अम्बेडकर के हिन्दू कोड बिल के खिलाफ़ थे? कर क्या पाए ये अहम विषय है। सक्सेशन एक्ट में किए गए बराबरी के अधिकार ने भाई-बहनों को एक दूसरे के खिलाफ़ कोर्ट कचहरी करा दिया। ४९८/ए ने न जाने कितने निर्दोष जेल में पहुँचा दिए। काहे दिखावे का ये करवा चौथ हो रहा है, आय काण्ट अण्डरस्टैंड। उल्लुओं के मानिंद हजारों एक्ट बना के रखे हैं देश भर में। क्या सब के सब भ्रष्टाचार की जड़ नहीं हैं। सुगम क्यों नहीं बना पाते हम सब चीज़ों को ? अड़ंगों से दौड़ जीती गई है,कभी भला ?

और ये इंजीनियर दिवस दिनेश गौर जी,
नमस्ते सर। इनको सामने वाले से अदब से बात करना तक तो आता नहीं ये देशप्रेम करेंगे। डोनेशन देके प्रायवेट कालेज से पास होकर यही इंजीनियर तो पुल पे पुल गिरा रहे हैं और बात करते हैं अक्ल की। आप सुबह उठकर दैनिक कार्यों से फ़ारिग होकर थोड़ा भगवान के सामने ध्यान वगैरह किया कीजिए सर, ये बात बात पर सुलगना अपने आप कम हो जाएगा। हा हा। जरा इतिहास वितिहास अच्छे से समझना पढ़ना सीखो यार, क्या है ये, हैं ? अरे कुछ नहीं तो जिसको बहुत पसंद करते हो आप लोग वो क्या नाम है ? हाँ गोड़से नथुराम। उसकी ही लिखी पुस्तक पढ़ लो-- "गाँधीवध क्यों ?" सारे ज्ञानचक्षु खुल जावेंगे, भाई।

अरे हाँ ये मराठी भाऊ मिस्टर संजय कटारनवरे जी तो रह ही गए। आय हाय क्या बात है कटारपति! बहुत उम्दा। अरे भाऊ एतिहासिक गलतियाँ आजतक कभी सुधरी हैं भला ? रावण को हर साल जला जला के मार रहे हो और हर साल न जाने कितनी ही सीताएँ अगवा होकर अपनी इज्जत गँवा रही हैं। तब न इस राम सेना का कहीं पता होता है न बजरंग दल का। लाल बत्ती पर जब सिग्नल टूटता है तब भगतसिंह दल वहाँ से हमेशा नदारद रहता है। और हमने क्या किया पूछ रहे हैं ना तो एक बात समझ लीजिए यदि हर आदमी अपने आप को सुधार ले तो आपकी स्टाइल से समाज सुधार की जरूरत ही न पड़े। मैनें यह कभी नहीं कहा कि पीटने की नहीं बनती। बनती है भैया, मगर लकीर पीटने से क्या फ़ायदा। जड़ में पहुँचा जाए तो उपाय कारगर होगा बस इतना ही तो कहा। ब्लॉगर्स को छायावादी भाषा की समझ होना चाहिए। आप सब सिर्फ़ शाब्दिक अर्थ के उथले तैराक हैं। खैर, कोई बात नहीं सुधार की उम्मीद और दुआ के साथ आप सबको नमस्कार।

Er. Diwas Dinesh Gaur said...
@किलर झपाटा
मेरे सवालों का जवाब दिए बिना ऊट-पटांग टिपियाने से कोई फायदा नहीं|
देश में पचासों अनियमितताएं हैं, तो क्या किसी को देश तोड़क बयानबाजी करने की आज़ादी मिल जाती है? इससे बड़ी मुर्खता की बात और क्या हो सकती है? और तुझ जैसे लोग उनका समर्थन भी करते हैं|
सारे खोट उस युवक में ही क्यों नज़र आ रहे हैं, जिसने भूषण को पीता, क्या भूषण निर्दोष है?
साफ़ साफ़ बोल, क्या कश्मीर को भारत से अलग कर देना चाहिए? घुमा फिर कर उत्तर मत देना, जो कहना है क्लीयर कट कहना, जैसे मैंने कहा|  और हाँ तमीज केवल तमीज के हकदारों को ही मिलती है| अयोग्य व्यक्तियों को तमीज देकर मैं तमीज के साथ बदतमीजी नहीं कर सकता|  मेरी इंजीनियरिंग से तुझे इतनी जलन क्यों है? जो भी हूँ, आज अपने दम पर हूँ| किसी के बाप को एक फूटी कौड़ी नहीं खिलाई|
प्रतीक माहेश्वरी said...
तो आपके हिसाब से प्रशांत भूषण ने जो टिप्पणी कश्मीर पे की वो गैर-जिम्मेदाराना थी?
मैं तो यह कहता हूँ कि अब किस कश्मीर की लड़ाई चल रही है? उस सफ़ेद बरफ पर जमी हुई खून वाली कश्मीर?
या फिर आये दिन होने वाले विरोधों की कश्मीर?
अब वो इस धरती का स्वर्ग नहीं रहा.. खून-खराबा और लड़ाई जहाँ एक नियम बन चूका है उसके लिए किसी का भी लड़ना फिजूली है.. और प्रशांत भूषण की पिटाई हुई तो ठीक.. पर फिर ऐसे ही लोग दिग्विजय और उसके जैसे ही अन्य लोगों की पिटाई करने क्यों नहीं जाते हैं? तब इनकी हवा क्यों निकल जाती है.. सिर्फ और सिर्फ इसलिए क्योंकि दिग्विजय जैसे लोगों के हाथ में सत्ता है..
प्रशांत भूषण तो एक आम आदमी है जिसे कोई भी पीट सकता है राह चलते पर अगर सत्ता पर बैठे गद्दारों के साथ ऐसा सुलूक कोई करके दिखाए तभी उनके लिए मन में श्रद्धा उमड़ेगी अन्यथा वो आतंक फैलाने वालों की ही श्रेणी में गिने जाएंगे..
किलर झपाटा said...
@दिवस दिनेश गौर जी,
हा हा क्या बात है इंजीनियर साहब! कह रहे हैं "तमीज देकर मैं तमीज के साथ बदतमीजी नहीं कर सकता"। और करते बदतमीज़ी ही जा रहे हैं। वाह वाह ! जानी राजकुमार की पिक्चर देख लिए हैं क्या ? जो डायलॉग पर डायलॉग जड़ते जा रहे हैं। आपकी बात का जवाब तो प्रतीक माहेश्वरी जी ने १००% दे ही दिया। अब मेरे जवाब की जरूरत ही नहीं रही। रही बात उस युवक की तो इस तरह के लोग बिल्ली के गू होते हैं जो न लीपने में यूज़ किया जा सकता है न पोतने में। कम से कम इंजीनियर साहब, आप तो उनके जैसा बनने की कोशिश न करें। और आप कोई न्यूज़ चैनल वाले हैं, जो आपके सवालों का जवाब दूँ ? आप इंजीनियरिंग करके इतनी शान क्यों बघार रहे हैं, भाई ? आजकल तो हगे-पदे लोग भी इंजीनियर बन जाते हैं, हा हा। हगों-पदों से जलन रख कर क्या फ़ायदा ? आप तो खैर, ऐसे नहीं हैं, क्योंकि आपने किसी के बाप को फ़ूटी कौड़ी वगैरह खिलाई ही नहीं है, है कि नहीं ? गुड बॉय, खिलाना भी नहीं, क्योंकि भले ही आप मुझसे कितना भी लड़ें, मगर भ्रष्टाचार से लड़ने में तो आप प्रशांत-भूषण जी के साथ ही खड़े नजर आ रहे हैं, एम आय राँग? अरे हाँ और वो आपके "क्लीयर कट" पर बात करना तो भूल ही गए। अरे भैया, सब कुछ क्लीयर कट होने लगता ना, तो ये कश्मीर समस्या ही ना खड़ी होती। हा हा। चलिए आपसे एक क्लीयर कट सवाल पूछता हूँ। बिना घुमाए फिराए सिर्फ़ ‘हाँ’ या ‘ना’ में उत्तर दीजिएगा, ओ.के.।
“आपने अश्लील फ़िल्में देखना छोड़ दिया ”? हा हा।
गैट वैल सून इंजीनियर साहब।

ZEAL said...
@ नीरज रोहिला -
लोकतंत्र है भी हमारे देश में ? ज़रा सुनिश्चित कर लें पहले।
यहाँ शांतिपूर्ण तरीके से अनशन कर रहे , सोये हुए स्त्री पुरुषोंको आधी रात में लाठियों से मारा जाता है , क्या यही लोकतंत्र है ?
घोटालेबाजों पर महामहिम की चुप्पी ही लोकतंत्र है क्या ?
आतंकवादी देश के दामाद बने बैठे हैं और मासूम जनता निरपराध मर रही है , क्या यही लोकतंत्र है ?
कश्मीर हमारे देश का अभिन्न अंग है , उसके लिए अलगाववादी बयान क्या लोकतंत्र का हिस्सा है ?
भारत का खंडित करने वाले वक्तव्य क्या लोकतंत्र के हिस्से में आते हैं ?
यदि हर भारतीय ऐसे ही बयान देगा तो "देशप्रेम" की परिभाषा क्या होगी ? और देशद्रोही तथा अलगाववादी किसे कहा जाएगा ? पाकिस्तानी ओर हिन्दुस्तानी में फर्क क्या रह जाएगा भला ?
इस तरह की बयानबाजी करने वालों को ऐसी ही सजा मिलनी चाहिए तत्काल से, ताकि अन्य सर-उठाते देशद्रोहियों को वक़्त रहते सही शिक्षा मिल जाए।

ZEAL said...
@ और भी तरीके .....
किसी ने यह नहीं बताया की और भी कौन से तरीके हो सकते हैं ? नपुंसकों की जमात यूँ भी ज्यादा है , तभी तो हमारा देश आजाद होते हुए भी गुलाम है।

ZEAL said...
@ JC जी ,
कैंसर जब प्रारम्भिक अवस्था में हो तभी उसका conservative treatment संभव है। स्थिति बिगड़ने पर व्याधिग्रस्त अंग को काट कर फेंक देना ही एक मात्र इलाज है , अन्यथा रोग हड्डियों तक पहुँच जाता है और मृत्यु अवश्यम्भावी है। अतः नासूर के बढ़ने से पहले ही उसे नष्ट कर देना चाहिए।
आज एक भूषण हैं , कर को दस हो जायेंगे , अतः ऐसे लोगों की पिटाई उचित है , ताकि लोग देशद्रोही बयान देने से पहले सौ बार सोचें।  गुनाहगार खुले घुमते हैं तो अन्य दुष्टों को भी दुष्टता करने के लिए बल मिलता है।
अतः शठे शाठ्ये समाचरेत ! ( ऐसा श्रीकृष्ण का उपदेश है )
कल करवाचौथ का उपवास था , पारिवारिक तथा सामाजिक दायित्वों की व्यस्तता के कारण अंतरजाल पर नहीं आ सकी , अतः आपके प्रश्न का उत्तर देने में विलम्ब हुआ। करबद्ध क्षमाप्राथी हूँ।

ZEAL said...
@ किलर झपाटा-
आपने लिखा मुझे ज़रा भी समझ नहीं है और ऊटपटांग लिखती हूँ।
क्या आप नासमझों के ही ब्लौग पर दर्शन देते हैं ? अथवा कोई और कारण है मुझ पर इतनी कृपा करने की ?
आपको चेतावनी दी जाती है की मेरे आलेख पर आये टिप्पणीकारों का अपमान करने की गुस्ताखी न करें। आपकी अन्य ID भी जानती हूँ। आपने अपने दोनों ID से यहाँ टिप्पणी कर रखी है।
आप कौन हैं , यह कोई जाने या न जाने लेकिन मैं पिछले एक वर्ष से जानती हूँ हूँ, जबसे आपने मेरे खिलाफ आलेख लिखकर भाड़े के टट्टुओं द्वारा मुझे बदनाम करने की कुचेष्टा की थी।
ऐसी कुचेष्टा बहुत से अज्ञानी स्त्री एवं पुरुष ब्लॉगर कर चुके हैं। जब अंगूर अप्राप्य हो जाते हैं तो लोग इसी ही कुचेष्टा करते हैं। आप का दिल यदि न भरा हो तो पुनः एक आलेख लिख दें , अब आपको और भी ज्यादा बदबूदार टिप्पणियां मिलेंगीं, क्यूंकि मुझसे द्वेष रखने वालों की बढ़ गयी है, जिसका लाभ आप ले सकते हैं।
द्वेष रखना आसान काम है , जो उथले लोग ही करते हैं। प्यार तो सिर्फ दिलदार ही करते हैं , सबके बस की बात नहीं।

ZEAL said...
@ किलर झपाटा-
आप दिवस के पीछे हाथ धोकर न पड़ें। वह एक देशभक्त युवा है। आपको व्यक्तिगत आक्षेप लगाने हों तो कहीं और जाइए । मेरे ही आलेख पर मेरे होनहार बेटे का अपमान करने की कुचेष्टा मत कीजिये।
गर्व है मुझे दिवस पर , हर माँ को गर्व होता है ऐसे बेटे पाने पर। गर्व है भारतमाता को अपने देशभक्त बेटों पर जिन खून में उबाल तो आता है । अन्यथा तो आजकल लोगों का रक्त जमा हुआ ही होता है।
रही बात उनके अहंकार करने कि, कि वे इंजीयर हैं , तो अवश्य करनी चाहिए। अपनी शिक्षा पर गर्व करना ही चाहिए। मुझे भी गर्व है दिवस कि शिक्षा पर ।  दिवस मेरा होनहार इंजिनियर-ब्लॉगर-देशभक्त बेटा है। आज ऐसे ही बेटों कि ज़रुरत है भारत माता को।

डा.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...
सीधी बात कर रहा हूँ किलर झपाटा नाम के प्राणी से-
भाई/बहन/लैंगिक विकलाँग क्या हो इसलिये संबोधन में कदाचित अड़चन न हो अन्यथा न लीजिये। संजय कटारनवरे ने जो भी लिखा उसे दोहराने की जरूरत नहीं है। आपने ये अनुमान कैसे लगा लिया कि कौन बिल्ली का गू है और बाकी लोग किस तरह के मल पदार्थ हैं। हम तो कभी समाज के सुधार की बात ही नहीं करते हम खुद सुगंधित हो जाएं आसपास की दुर्गंध स्वतः ही हल्की होने लगेगी। एक बात स्पष्ट बता दूँ कि हम लोग जीवन को ऑनलाइन ही नहीं बल्कि ऑफ़लाइन भी इसी अंदाज में जीते हैं। जीवन ब्लॉगिंग या कमेंट्स तक सीमित नहीं है, प्यार से गले लगाने और घूँसे से मुँह तोड़ देना भी तो है हमारे लिये, जहाँ जो मुद्रा चलती हो वो सिक्का निकाल लेते हैं। आप चाहें तो मेरी मेडिकल की उपाधि एम.डी. और पी.एच.डी. पर भी सवालिया निशान लगा सकते हैं। आप ४९८ ए के लिये परेशान हैं और हमारे कुछ परिचित १२४ ए के बारे में संघर्ष कर रहे हैं सबका अपना अपना महाभारत सजा हुआ है क्योंकि सबका आदर्शवाद भिन्न है। आपने नाथूराम गोडसे की बात कही है तो बस इतना बता दीजिये कि आपके दर्शन के अनुसार राष्ट्रवाद(मैं महाराष्ट्रवाद की बात नहीं कर रहा) क्या है। एतिहासिक गलतियाँ सुधारी जाने की प्रक्रिया इतनी धीमी होती है कि आप उसे शायद महसूस नहीं कर पा रहे हैं और हमें श्रीराम सेना या बजरंग दल या किसी फासीवादी सोच से उपजा मानने का दुराग्रह पाल बैठे हैं।
आप साफ़ तौर पर बताइये कि क्या आप वोट करते हैं?
यदि हाँ तो किस आधार पर? यदि ना तो कारण साफ़ करें??
आप लोकतंत्र और भारत के मौजूदा संविधान के बारे में क्या विचार रखते हैं, आपकी सोच में “विधि का शासन” क्या महत्त्व रखता है?
क्या आपकी जड़ें बरतानिया से जुड़ी हैं या अमेरिका से जो बीच-बीच में आप देवनागरी में आंग्लभाषा में विचार व्यक्त करने लगते हैं?
क्या आप मुझसे इतिहास(भारत एवं विश्व), भारत का समाज और समाज शास्त्र, विधि शास्त्र, अपराध शास्त्र, राजनीति विज्ञान, मनोविज्ञान, दर्शन शास्त्र, चिकित्सा शास्त्र, भाषा विज्ञान में से क्या किसी विषय पर शास्त्रार्थ करना चाहते हैं संभव है कि कुछ रचनात्मक निर्णय निकल आए?
ब्लॉगिंग करने वाले शाब्दिक तालाब में तैरने वाले लोग हैं या विचारों के समुद्र में गहरे गोता लगा कर मोती चुन कर लाने वाले इसका निर्णय आप कैसे लेते हैं, कुछ तो पैमाना होगा आपके पास तो अगली टिप्पणी में हमारे साथ बाँटना चाहेंगे?
क्या आप अश्लील फिल्में बनाते हैं?
आप या प्रतीक माहेश्वरी जी कब और कितनी बार काश्मीर होकर आए हैं ये बताएं तो इस विषय पर अवश्य बात करेंगे?
Jएक बात बतानी थी कि संजय कटारनवरे मराठी नहीं जन्मना हिंदीभाषी हैं लेकिन उनके पूर्वज महाराष्ट्र से थे
हम पीटते हैं लेकिन लकीर नहीं जो लकीरें बना रहा है उसे समझने का प्रयास करते हैं कि लकीरें रचनात्मक हैं या ध्वंसात्मक, उसके बाद बनी लकीरों को संवारने का जतन कर रहे हैं; आप भी योगदान करें। आत्मकेन्द्रित रह कर आत्ममुग्धता में लीन रहना समाज से अलग कर देता है। निःसंदेह आप मानव हैं तो सामाजिक होंगे ही यदि न हो तो भी आपका नैतिक दायित्व है मानना न मानना आपका निर्णय होगा लेकिन विचार अवश्य करिये।
हृदय से प्रेम सहित
डॉ.रूपेश श्रीवास्तव

Er. Diwas Dinesh Gaur said...
@किलर झपाटा
तेरी घटिया टिप्पणियों में ही तेरी घटिया सोच दिखाई दे रही है| अगर तू अश्लीलता से ऊपर उठकर कुछ सोच पाता तभी तुझे राष्ट्रवाद का कुछ आभास होता| मेरे सवाल का जवाब देने की तेरी औकात नहीं है| अश्लील फ़िल्में तू ही देख और करता रह वैचारिक हस्त मैथुन|
October 16, 2011 4:30 PM

Er. Diwas Dinesh Gaur said...
दिव्या दीदी
मेरे पास शब्द नहीं हैं| आप समझ सकती हैं, मैं क्या कहना चाहता हूँ|
आपने मुझमे जो विश्वास दिखाया है, उसे बनाए रखूंगा| निश्चित रूप से आप मेरी बड़ी बहन ही नहीं, मेरी माँ भी हैं| मुझे गर्व है मेरी माँ पर जो समाज के साथ साथ ब्लॉगजगत में फैली अनियमितताओं के खिलाफ भी लडती है| ब्लॉग भी तो समाज का ही एक हिस्सा है| यहाँ आपका लोहा अब सभी को मानना पड़ रहा है|
कितने ही मूर्खों ने आप पर आक्रमण किया, और स्वयं को मर्द समझ रहे थे| ऐसी परिस्थितियों में भी आपका लौहत्व नहीं डगमगाया| दुःख तो तब हुआ जब इन तथाकथित मर्दों की जी हुजूरी कुछ महिलाएं भी कर रही थीं जो आज तक जारी है| ऐसी महिलाओं पर समय क्या बर्बाद करना|

झपाटे टाइप प्राणी गली गली भौंकते दिखाई दे जाते हैं| इनमे और दिग्गी में अधिक अंतर नहीं है| इनकी बेहूदगी तो देखिये, अश्लीलता पर भी आ गए| फिर भी इनके लिए "झपाटा जी" जैसे सम्मान सूचक शब्दों का उपयोग दुःख दे रहा है| जो व्यक्ति हमारे देश को तोड़ने की बात कर रहा है उसे सम्मान मिल रहा है और कहते हैं "अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता"
कल यही आदमी माताओं और बहनों से दुकर्म की इच्छा जाहिर करेगा (अब इसकी नीयत तो इसकी टिप्पणियों में ही दिखाई दे जाती है, जब यह अश्लील फिल्मों के सवाल पूछ रहा है) तो क्या इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मानकर सम्मानित किया जाएगा? इसमें और भूषण में फर्क ही क्या है?
खैर, इनका भी इलाज हो जाएगा|

आप इसी प्रकार अपना आशीर्वाद, प्रेम व विश्वास बनाए रखें|
आपका बेटा
दिवस


आदरणीय ज़ील मैडम,
वैसे तो मेरा आपसे वाकयुद्ध का कोई इरादा नहीं था, पर अब आप समर में उतर ही पड़ी हैं तो ठीक है। टिप्पणियाँ करने और पाने में क्रोध का स्थान नहीं होना चाहिए और सामने वाले को घड़ी-घड़ी उसकी ID बताने की धमकी देने वालों को मैं कायर समझता हूँ। ये सुविधाएँ ब्लॉग पर इसीलिए हैं कि अपनी बात निसंक्कोच रखी जा सके। अब आप लोग मेरी बात का जवाब दे नहीं पाते तो मैं क्या कर सकता हूँ जी ? वाह वाह आप स्व्यंभू भारत-माता और दिवस आपके देशभक्त बेटे ! क्या कहना ! और आपको बदनाम करने की कुचेष्टा करने की जरूरत ही क्या है जब आप खुद-बखुद अपनी बेहतरीन हरकतों की वजह से .......अब हटाइये भी। मैं बोलूँगा तो बोलोगे कि बोलता है। हा हा।
और मैडम सुनिए, मेरी हर टिप्पणी की भाषा जरा लैंस लगाकर पढ़ा कीजिए। मैं कतई अपमान-जनक बात किसी के लिए कभी करता नहीं। वो आपके तथाकथित बेटे (इंजीनियर साहब) ने मुझसे किस तरह बात की, पढ़ लीजिए। बाद इसके मुझे कुछ कहें। जब मेरी आपकी बात हो रही थी तो उन्हें भनभनाने की क्या जरूरत थी भला ? अब हैंडवाश डे पर झपाटा को छेड़ोगे भाई, तो वो तो हाथ धोकर पीछे पड़ेगा ही। हा हा। पुराना सफ़ाई-पसंद है ना। चूँकि आपने आदेश दिया है और आपकी बहुत इच्छा है तो ठीक है, अपने ब्लॉग पर इस वाकयुद्ध प्रकरण पर लेख लिख दुँगा। दे दीजिएगा अपनी पलटन के साथ मुझे उसी तरह हजारों गालियाँ। धन्यवाद।

वाह वाह रूपेश जी,
क्या सीधी बात की है आपने मुझसे। मगर भैया पहले मेरी इसके पूर्व की गई टिप्पणियाँ तो छाप लीजिए फिर आगे बात करिएगा। सयाना कौवा हमेशा गू (आपकी भाषा में मल) पर ही बैठता है और आप भी जल्दबाजी में वही कर बैठे हैं मुझ पर टिप्पणी करके। राज़ खुलने वाला है आपका। प्लीज़ डोण्ट माइंड। आप लोग इतने डरपोक क्यों हैं जो सवाल तो करते है जवाब के वक्त मॉडरेशन चालू कर लेते हैं। मुश्किल है ऐसे में प्रमोशन आपका।

इंजीनियर दिवस साहब,
मैंने आपसे सिर्फ़ हाँ या ना में जवाब पूछा था वो तो आप दे नहीं पाए। हार मान लीजिए भाई। ये मॉडरेशन लगाकर होशियारी दिखाने से थोड़ी जीत जाओगे। हा हा।  अच्छा ! तो आप अश्लील फ़िल्में देख देख कर वैचारिक हस्त मैथुन भी करते हैं। वैरी स्ट्रेंज। गन्दी बात है ये। आपके हितैषी वो आयुर्वेदाचार्य डॉ. रूपेश श्रीवास्तव जी (ज़ील के नाम से दुनिया को बेवकूफ़ बनाने वाले) ने नहीं बतलाया कि इससे शारिरिक कमजोरी आ जाती है। बतलाइए अब आपको तो मानसिक कमजोरी तक आ गई है। इसीलिए तो कहते हैं कि मन में कुत्सित विचारों को स्थान नहीं देना चाहिए। क्रोध वगैरह करना छोड़िए और टिप्पणी मॉडरेशन से बचे रहिए। आप भी जल्द उबर जाएंगे ऐसी परेशानियों से। भगवान आपको सदगति ओ सॉरी सदबुद्धि दे। धन्यवाद।   


सोमवार, 10 अक्टूबर 2011

हम भी पगले... तुम भी पगले .... पगला है जग सगरा..................

                  आजकल बड़े बड़े लोगों में पगल-युद्ध छिड़ा हुआ है। अन्ना ने दिग्गी को पूना के पागलखाने भेजने की बात कही, तो दिग्गी ने अन्ना को ग्वालियर का रास्ता दिखा दिया। अपने हताशाजाम पापू जी ने राहुल को बबलू बता दिया। जवाब में वो उनको खूसट बता देंगे, और क्या ?   कुछ लोग बंटियों को पकड़-पकड़ के उनके गले में भ्रष्टाचार से गली हुई रस्सियों से शिष्टाचार की घंटियाँ बाँधने का निरर्थक प्रयास कर रहे हैं। एक आँख झपका झपका कर एक पिंकी टाइप साधू बाबा सरकार के पीछे पड़े हैं कि "भैया मैं तो कारा-धन खिलोना लै हूँ। पब्लिक भी तो ठीक उसी तरह पगलिया गई है जैसे कि भू भू की तशरीफ़ में पैट्रोल का फ़ोहा छुआ दिया जावे तो वो इकड़े-तिकड़े भागता है, है ना। यार कसम से ऐसा लगता कि उठा कर के लाठी, एक तरफ़ से सबको जो सूँटना शुरू करो ना तो दो चार सौ साल थुथरते ही रहो। हद हो गई है, अब तो इन सबको डायरेक्ट पीटने की बनती है। अदरवाईज़ आय थिंक इट विल बी टू लेट। एम आय राँग ?

हम भी पगले, तुम भी पगले, पगला सब संसार
किलर झपाटे, चला के लठिया, कर दो अब उपचार   
 

मंगलवार, 26 जुलाई 2011

जय जय भारत के पहलवान.................योगेन्द्र मौदगिल जी की लाजवाब रचना

देखिये क्या जोरदार कविता लिखी है मेरे आग्रह पर मोदगिल चाचा ने वाह वाह वाह: -
बहुत बहुत धन्यवाद योगेन्द्र चाचा।

जय लाल लंगोटे वाले की..जय बोल दे सोट्टे वाले की..
जय बजरंगी के मान की जय..
जय भारत के सम्मान की जय

ये पहलवान अम्बाले का, ये पहलवान पटियाले का.
ये पहलवान पंजाब का है, इसका मुक्का दोआब का है..
सब इसे देख के डरते हैं, गोरे तो पानी भरते हैं...
ये दांव-पेंच इस के असली, बाकी दुनिया सारी नकली....
जय लाल लंगोटे वाले की..जय बोल दे सोट्टे वाले की..
जय बजरंगी के मान की जय..
जय भारत के सम्मान की जय

ये दूर विदेशों में लड़ते, ये परदेसों में भी लड़ते.
इन के ही चर्चे दुनिया में, इन की ही जय-जय दुनिया में..
दुनिया में बड़ा अचम्भा है, ये पहलवान क्या खम्बा है...
ये भीम का भाई लगता है, ये गदा उठा कर सजता है....
जय लाल लंगोटे वाले की..जय बोल दे सोट्टे वाले की..
जय बजरंगी के मान की जय..
जय भारत के सम्मान की जय

थी भारी भीड़ अखाड़े में, चन्दन चाचा के बड़े में.
वहां धोबी-पाट का मेला है, कुश्ती-कुश्ती का खेला है..
यहाँ किलर-झपटा बनते हैं, मंगोल यहीं पर तनते हैं...
है दारासिंह का नाम यहाँ, है कीन्ग्कोंग का गाम यहाँ....
जय लाल लंगोटे वाले की..जय बोल दे सोट्टे वाले की..
जय बजरंगी के मान की जय..
जय भारत के सम्मान की जय

जय बोल यहाँ हरियाणे की, जय दूध-दही के खाणे की.
जै दिल्ली की कश्मीर की जै, जै गंगा-सागर तीर की जै..
जय भोली-भली हीरों की, जय देश के सारे वीरों की...
जय राजस्थान की माटी की, जय दंगल की परिपाटी की....
जय लाल लंगोटे वाले की..जय बोल दे सोट्टे वाले की..
जय बजरंगी के मान की जय..
जय भारत के सम्मान की जय

ये धरती वीर-जवानों की, अलबेलों की-मस्तानों की.
विज्ञानी और किसानों की, ये धरती है परवानों की..
है बच्चा-बच्चा वीर यहाँ, हर पहलवान महावीर यहाँ...
यहाँ रोज अखाड़े सजते हैं, बम-बम के नारे बजते हैं....
जय लाल लंगोटे वाले की..जय बोल दे सोट्टे वाले की..
जय बजरंगी के मान की जय..
जय भारत के सम्मान की जय
--योगेन्द्र मौदगिल

गुरुवार, 16 जून 2011

झूठ झपाटा ..........

दिग्गीजी को झूठ बोलने की लत लग गई..कुछ भी उलटा-सुलटा किया... झूठ बोला..और जान बचा ली..स्कूल का होमवर्क नहीं किया तो पिताश्री के एक्सीडेंट तक का बहाना बना लिया...टीचर बजाए डांटने के और हमदर्दी जताने लगती...लेकिन धीरे-धीरे दिग्गीजी की कलई खुलने लगी और शिकायतें घर तक पहुंचने लगीं..(माताश्री) और (पिताश्री) दोनों परेशान...दिग्गीजी का करें तो करें क्या...भला हो पिताश्री के एक साइंटिस्ट दोस्त का, उसने माज़रा भांप लिया...साइंटिस्ट साहब ने समाधान सुझाया कि वो ऐसा रोबोट दिला सकते हैं जो झूठ सुनते ही बोलने वाले के गाल पर झन्नाटेदार झपाटा  i.e. चांटा रसीद करता है...झूठ बोलने वाले को दिन में ही तारे नज़र आने लगते हैं...ये सुनकर पिताश्री-माताश्री दोनों बेहद खुश..साइंटिस्ट से बोले..हमें इसी वक्त वो रोबोट दिलाओ...खैर रोबोट घर आ गया..दिग्गीजी रोबोट से बेखबर घर पर आए..स्कूल छूटता था 2 बजे और दिग्गीजी घर पर शाम को 6 बजे आए...माताश्री-पिताश्री ने पूछा...कहां थे अब तक...दिग्गीजी ने तपाक से कहा..वो दोस्त के घर पर भजन था...वहीं गया था... दिग्गीजी को पता नहीं था, पर्दे के पीछे रोबोट छुपा था..रोबोट बिना वक्त गंवाए बाहर आया और तड़ाक से दिग्गीजी के गाल पर प्रसाद दे दिया...पिताश्री फौरन समझ गए..दिग्गी ने झूठ बोला है...बोले...सच-सच बताओ..कहां गए थे...दिग्गी ने सच बोलना ही बेहतर समझा..वो..वो..दोस्तों के साथ फिल्म गया था...पिताश्री फौरन बोले...शर्म तो नहीं आती होगी, हम तुम्हारी उम्र के थे तो दिन-रात पढ़ाई के सिवा और कुछ नहीं सोचते थे...ये सुनते ही रोबोटजी मुड़े और पिताश्री के गाल पर भी एक जड़ दिया...पिताश्री का झूठ पकड़े जाने पर माताश्री को मौका मिल गया...बोलीं...देखा, आखिर है तो आप ही का बेटा न..जैसा बेटा, वैसा बाप...माताश्री के ये बोलते ही रोबोट धीरे से आया और एक उनके गाल पर भी धर दिया... 
ही ही ही
हँसियेगा मत इस रोबोट झपाटे का कोई भरोसा नहीं ।

सोमवार, 16 मई 2011

चित भी मेरी, पट भी मेरी, खड्डी मेरे बाप की


भाइयों,
हमारे ब्लॉगजगत में एक अज़ीम शख्सियत हैं मिस्टर रमेश कुमार जैन उर्फ़ "सिरफ़िरा"
अब जरा उनके प्रोफ़ाइल में उनके बारे में उनकी ही जुबानी पढ़ें आप लोग :-
"मेरे बारे में
मुझे अपराध विरोधी व आजाद विचारधारा के कारण ही पत्रकारिता के क्षेत्र में 'सिरफिरा' प्रेसरिपोर्टर के नाम से पहचाना जाता है.अन्याय का विरोध करना और अपने अधिकारों हेतु जान की बाज़ी तक लगा देना.हास्य-व्यंग साहित्य,लघुकथा-कहानी-ग़ज़ल-कवितायों का संग्रह,कानून की जानकारी वाली और पत्रकारिता का ज्ञान देने वाली किताबों का अध्ययन,लेखन,खोजबीन और समस्याग्रस्त लोगों की मदद करना.एक सच्चा,ईमानदार, स्वाभिमानी और मेहनती इंसान के रूप में पहचान. मै अपने क्षेत्र दिल्ली से चुनावचिन्ह "कैमरा" पर निर्दलीय प्रत्याक्षी के रूप में दो चुनाव लड़ चुका हूँ.दिल्ली नगर निगम 2007,वार्ड न.127 व उत्तमनगर विधानसभा 2008 के दोनों चुनाव में बगैर किसी को दारू पिलाये ही मात्र अपनी अच्छी विचारधारा से काफी अच्छे वोट हासिल किये थें.मेरी फर्म "शकुंतला प्रेस ऑफ़ इंडिया प्रकाशन" परिवार द्वारा प्रकाशित पत्र-पत्रिकाएँ-जीवन का लक्ष्य (पाक्षिक)शकुंतला टाइम्स(मासिक),शकुंतला सर्वधर्म संजोग(मासिक),शकुंतला के सत्यवचन(साप्ताहिक) ,उत्तम बाज़ार(त्रैमासिक)"शकुंतला एडवरटाईजिंग एजेंसी"द्वारा सभी पत्र-पत्रिकायों की विज्ञापन बुकिंग होती है.निष्पक्ष,निडर,अपराध विरोधी व आजाद विचारधारा वाला प्रकाशक,मुद्रक,संपादक,स्वतंत्र पत्रकार,कवि व लेखक"
अब सुनिये,
धर्म निरपेक्षता और देशप्रेम से ओतप्रोत एक बहुत अच्छी और उम्दा पोस्ट लिखने के बाद भी ये मिस्टर अपनी पोस्ट को एडवरटाइज़मेंट की स्टाइल में सभी के ब्लागों पर जा जाकर निम्न टिप्पणियों के रूप में पेल रहे हैं:- (१)   श्रीमान जी, क्या आप इस नाचीज़ अनपढ़ व ग्वार इंसान की परेशानी समझ सकते है? तब आप अपने ब्लोगों पर हिंदी का विजेट लगा दें. आपकी पोस्ट पढता हूँ मगर समस्याओं के कारन बगैर टिप्पणी के लौट जाता हूँ. आप क्यों भूल रहे हैं कि-राष्ट्र के प्रति हर व्यक्ति का पहला धर्म है अपने राष्ट्र की राष्ट्रभाषा का सम्मान करना. जब आप पोस्ट हिंदी में लिखते हैं तब गुड खाकर गुलगलों से परेहज क्यों? गुस्ताखी माफ़ करें. टिप्पणी पढ़ते ही हटा देना. एक मेरा मीडिया को लेकर छोटा-सा अनुभव-एक किसी नेहा कक्कड़ ने आत्महत्या की और प्रिंट व टी.वी. चैनल ने इन्डियन आइडल फेम नेहा कक्कड़ की न्यूज चलाई और प्रिंट की. उनका घर पास था और मेरे समाचार पत्र के मेम्बर होने के कारण खोजबीन की. पूरा डाटा तैयार किया और उन सभी को लिखित में माफ़ी मांगने के लिए मजबूर कर दिया था. न्यूज जल्दी के चक्कर में खोजबीन करना पत्रकार आज भूलते जा रहे हैं, क्योंकि भौतिक वस्तुओं की चाह ने उनको उद्देश्यहीन कर दिया है. मैं पत्रकारों के ही स्टिंग ओपरेशन करता हूँ. इसलिए खुद को "सिरफिरा" कहलाता हूँ, क्योंकि सम्मानजनक पेशे में पत्रकार के नाम पर कुछ भेड़िये घुस गए और इनका सफाया हमें ही करना होगा. अगर आप चाहे तो मेरे इस संकल्प को पूरा करने में अपना सहयोग कर सकते हैं. आप द्वारा दी दो आँखों से दो व्यक्तियों को रोशनी मिलती हैं. क्या आप किन्ही दो व्यक्तियों को रोशनी देना चाहेंगे? नेत्रदान आप करें और दूसरों को भी प्रेरित करें क्या है आपकी नेत्रदान पर विचारधारा
 
(२)   प्रिय दोस्तों! क्षमा करें.कुछ निजी कारणों से आपकी पोस्ट/सारी पोस्टों का पढने का फ़िलहाल समय नहीं हैं,क्योंकि 20 मई से मेरी तपस्या शुरू हो रही है.तब कुछ समय मिला तो आपकी पोस्ट जरुर पढूंगा.फ़िलहाल आपके पास समय हो तो नीचे भेजे लिंकों को पढ़कर मेरी विचारधारा समझने की कोशिश करें. दोस्तों,क्या सबसे बकवास पोस्ट पर टिप्पणी करोंगे. मत करना,वरना......... भारत देश के किसी थाने में आपके खिलाफ फर्जी देशद्रोह या किसी अन्य धारा के तहत केस दर्ज हो जायेगा. क्या कहा आपको डर नहीं लगता? फिर दिखाओ सब अपनी-अपनी हिम्मत का नमूना और यह रहा उसका लिंक प्यार करने वाले जीते हैं शान से, मरते हैं शान से श्रीमान जी, हिंदी के प्रचार-प्रसार हेतु सुझाव :-आप भी अपने ब्लोगों पर "अपने ब्लॉग में हिंदी में लिखने वाला विजेट" लगाए. मैंने भी लगाये है.इससे हिंदी प्रेमियों को सुविधा और लाभ होगा.क्या आप हिंदी से प्रेम करते हैं? तब एक बार जरुर आये. मैंने अपने अनुभवों के आधार आज सभी हिंदी ब्लॉगर भाई यह शपथ लें हिंदी लिपि पर एक पोस्ट लिखी है.मुझे उम्मीद आप अपने सभी दोस्तों के साथ मेरे ब्लॉग एक बार जरुर आयेंगे. ऐसा मेरा विश्वास है. क्या ब्लॉगर मेरी थोड़ी मदद कर सकते हैं अगर मुझे थोडा-सा साथ(धर्म और जाति से ऊपर उठकर"इंसानियत" के फर्ज के चलते ब्लॉगर भाइयों का ही)और तकनीकी जानकारी मिल जाए तो मैं इन भ्रष्टाचारियों को बेनकाब करने के साथ ही अपने प्राणों की आहुति देने को भी तैयार हूँ. अगर आप चाहे तो मेरे इस संकल्प को पूरा करने में अपना सहयोग कर सकते हैं. आप द्वारा दी दो आँखों से दो व्यक्तियों को रोशनी मिलती हैं. क्या आप किन्ही दो व्यक्तियों को रोशनी देना चाहेंगे? नेत्रदान आप करें और दूसरों को भी प्रेरित करें क्या है आपकी नेत्रदान पर विचारधारा? यह टी.आर.पी जो संस्थाएं तय करती हैं, वे उन्हीं व्यावसायिक घरानों के दिमाग की उपज हैं. जो प्रत्यक्ष तौर पर मनुष्य का शोषण करती हैं. इस लिहाज से टी.वी. चैनल भी परोक्ष रूप से जनता के शोषण के हथियार हैं, वैसे ही जैसे ज्यादातर बड़े अखबार. ये प्रसार माध्यम हैं जो विकृत होकर कंपनियों और रसूखवाले लोगों की गतिविधियों को समाचार बनाकर परोस रहे हैं.? कोशिश करें-तब ब्लाग भी "मीडिया" बन सकता है क्या है आपकी विचारधारा?   अमाँ यार सिरफ़िरे भाई , दूसरों के सर पे चढ़ कर अपनी पोस्ट पढ़वाओगे क्या ? मरे जा रहो एकदम से। हाँ नहीं तो । ये मीडिया का पक्का असर लगता है आप पर।  अरे जिसकी पोस्ट पढ़ रहे हो उस पर उस से संबंधित टीप करो भाई तो समझ में आता है मगर आजकल ब्लॉगरों में  भी ओबामा और अमरीका की तरह ये चलन आम है कि  -  
चित भी मेरी, पट भी मेरी, खड्डी मेरे बाप की
अपनी धौंस जमा ली मैनें, तेरी पत्ती साफ़ की    है ना  ? बोलो बोलो .............................. हा हा

शुक्रवार, 6 मई 2011

दि ग्रेट परशु - झपाटा

भगवान परशुराम की जय 
अक्षय तृतीया महापर्व पर आप सभी ब्लॉगर बंधुओं को बहुत बहुत शुभकामनाएँ एवं बधाइयाँ


और उनका दि ग्रेट परशु-झपाटा


जय हो प्रभॊ आपकी

सोमवार, 25 अप्रैल 2011

बिक गई तो फिर न मिलूँगी कभी नहीं कभी नहीं कभी नही............................शरम करो रे कोई

इन दिनों ब्लॉगजगत में ३० अप्रैल २०११ को लेकर बड़ी गहमा गहमी है। अरे हिन्दी ब्लॉगरों बमुश्किल पुरस्कार मिलने की बेला आई है, यार इट्स नॉट अ जोक। डॉ. जमाल तो बेचारे भड़भूँजे की दूकान में जाकर खुद को भुँजवा के भी आ चुके हैं इसी बात पर एण्ड यू ऑल आर ऑल नॉट अवेअर ? वण्डरफ़ुल ! खैर मैं तो जनाब फ़लाँ फ़लानापति और ढमके ढम्कात जी की बात कर रहा हूँ। यस इन दोनों ने एक बहुत ही अमके किस्म की किताब इस आयोजन को देखते हुए सबसे बिना पूछे पब्लिश कर ली है और सबके मुँह में ठूँस ठूँस कर बेच रहे हैं। अरे भैये ये लोग पहले समीर लाल की "देख लूँ तो चलूँ" को तो पचा लें तब न तुम्हारी खरीदेंगे ? अजीरन करवाओगे क्या ? बोथ ऑफ़ यू नॉटी बॉयज़। और ये लोग उस किताब में मेरा नाम छापने के लिये पैसा माँगते थे। अब भाई लोग आप ही बताओ मेरे पास झपाटे के सिवा और है क्या ? हा हा। कैन यू गैस मैंने क्या दिया होगा ? हा हा
 ये चर्चा नहीं जानी पर्चा है।
अरे ज्ञानदत्त जी, हँसिये मत ना मुझे भी हँसी आ जाती है ऐसे में। 
हाँ नहीं तो।

रविवार, 24 अप्रैल 2011

मुझे देखकर खिसक जाती है डॉ. अनवर जमाल की हवा.........................हा हा

ना जाने क्यों ब्लॉगजगत के सबसे बड़े हिन्दू-मुस्लिम दंगाई डॉ. अनवर जमाल की हवा खिसक जाती है मुझे सामने देखकर। मेरी टिप्पणी को वो सब काम छोड़ कर मिटाने आ जाते हैं। मुझे भाभी जी (मिसेज अन्वर जमाल) ने बतलाया कि किलर भाईजान, आप इन्हें क्यों इतना सताते हो बताइये आजकल कब्ज हो गई है इनको। मैने पूछा अरे इसका मेरे सताने से क्या संबंध ? वे बोलीं संबंध कैसे नहीं दिनभर नैट पर बैठकर उल्टी सीधी वाहियात पोस्टें लिखते रहते हैं और लैटरिन जाते ही फ़ौरन बाहर आ जाते हैं कि कहीं उस पोस्ट पर किलर झपाटे ने कोई टिप्पणी तो नहीं कर दी वरना लोग खिल्ली उड़ायेंगे इनकी बेवकूफ़ाना काबिलियत पर। आपकी टिप्पणी मिटा मिटा कर हाथ में छाले पड़ गये हैं इनके। हीही ।
अब आप लोग ही बताइये यार इसमें मेरा क्या कसूर है। मैने तो कल इनके हैप्पी बड्डे पर जो बधाई दी थी उसे भी इन्होंने मिटा दिया। पुराने बुजुर्ग कहते हैं कि किलर झपाटे की बधाई हमेशा स्वीकार लेनी चाहिये नहीं तो साल पर लोग गरियाते रहते हैं। अब आगे साल भर इनका भगवान, सॉरी ये तो अल्ला मियाँ वाले हैं ना, तो अल्लाह ही मालिक है। हा हा। 
एक नई कहावत नाजिल हुई अभी अभी मेरे ऊपर :-
अल्ला रखे खयाल तो गधा भी डॉ. जमाल

और तो और मुझे अपने ब्लॉगों को फ़ालो करने से भी ब्लॉक कर रखा है।
 हा हा खतम हो गये जमाल बाबू हार गया मुसलमान ।


रविवार, 17 अप्रैल 2011

क़ुरबानी का बकरा सलीम ख़ान और उसके प्यारे इब्राहीम के गप्पोड़ी खाब

एक बार पैग़म्बर इब्राहीम (अ.) के ख़्वाब में आया कि तुम अपनी सबसे ज्यादा अज़ीज़ चीज़ अल्लाह की राह में क़ुर्बान करो तो उन्होंने तमाम चीज़े दान की, बहुत सारे जानवर अल्लाह के राह में क़ुर्बान किये. मगर उन्हें लगातार ख़्वाब आते रहे और वो क़ुर्बान करते रहे. फ़िर उन्होंने सोचा कि मुझे तो सबसे ज्यादा अज़ीज़ मेरा बेटा (इस्माईल अलैहिस्सलाम) ही है.

तो उन्होंने इसका तज़किरा इस्माईल (अ.) से किया तो उन्होंने कहा कि जब अल्लाह हुक़म है तो आप उस पर ज़रूर अम्ल में लायें, मैं तैयार हूँ.

इब्राहीम (अ.) ने फ़िर अल्लाह के हुक्म के मुताबिक़ अपने प्यारे और सबसे अज़ीज़ बेटे इस्माईल (अ.) को  क़ुरबानी के नियत से उन पर छुरी चलाई. लेकिन छुरी को अल्लाह का हुक्म हुआ कि वह उनके प्यारे पैग़म्बर का बल भी बांका न करे. इस तरह स्वर्ग से एक दुम्बा आया जो इस्माईल (अ.) की जगह पर आ गया और वह कुर्बान हुआ. मैं बताता चलूँ कि इब्राहीम (अ.) की इस अदा हो और फ़रमाबरदारी को इतना पसंद फ़रमाया कि क़यामत तक इसे मुसलमानों पर फ़र्ज़ कर दिया. जिसे मुस्लिम लोग बकरा-ईद के रूप में कुर्बानी देकर मानते हैं.

अब सुनो भैया लोगों,
शंकर भगवान ने गणेश जी की गर्दन काटकर हाथी की गर्दन जोड़ी तो  सलीम खान जो कि ठीक से अपने दिमाग का स्क्रू तक नहीं जोड़ पाते कहते हैं कि ये गप्प है ऐसा हो नहीं सकता। 

दूसरी तरफ़ इनके अल्ला मियाँ जिनकी एक ठो ढंग की तस्वीर तक इनके पास है नहीं, वह छुरी को जिसमें जान भी नहीं है को हुक्म देते हैं कि वह उनके प्यारे पैग़म्बर का बल भी बांका न करे और हिन्दुओं के स्वर्ग से एक दुम्बा भेजते हैं (क्योंकि इनके मुसलमानों में जन्नत वन्नत तो होती ही नहीं है ना हा हा) जो इस्माईल (अ.) की जगह पर आ गया और वह कुर्बान हुआ.हा हा। सब का सब आटोमेटिक ? वैरी स्ट्रेंज। दिल्लगी बहुत है इस्लाम में। हा हा।
अरे सीधे क्यों नहीं कहते कि यार के उस दिन मटन खाने का बहाना चाहिये होता है और कुछ नहीं। कुर्बानी वुरबानी का फ़ालतू बहाना क्यों करना है के नहीं।
एक बात बताऊँ सलीम, जमाल और बुल्ले (हरीश) मियाँ,  आपके अल्ला मियाँ जिस दिन आपकी कुर्बानी सच में कुबूल फ़रमा गये और एक आध दुम्बा भी उन्होंने अपने हलक में उतार लिया ना तो आप लोग ही सब के सब अपने अपने दुम्बे लेकर भाग छूटोगे ये कहके कि आज से अल्ला मियाँ ने मुसलमानों पर ये फ़र्ज़ आयद किया कि अब वे दुम्बे की जगह अपनी औकात के मुताबिक मच्छरों की कुरबानियाँ दिया करें।

हा हा हा।

शनिवार, 9 अप्रैल 2011

कुमार विष-वास और जबलपुर वालों में ठनी

ओय पहलवानों संभल जाओ रे,
ये कुश्ती तो लगता है नये रंग दिखायेगी। एक हफ़ते के मुम्बई टूर के बाद हाँगकाँग लौटा तो ब्लॉगवुड कुछ बदला बदला दिखा। जमाल डाक्टर और सलीम को हमारी वाणी के झटके वगैरह के बीच आज की ताजा खबर  ये मिली के हरदिल अजीज कुम्मू भैया याने कुमार विश्‍वास बड़ी मुश्किल से इंडिया प्रवास किया और वो एम.पी. के जबलपुर। भाई साहब की पुरानी आदत है हंगामा करने की और शायद वहाँ भी वही कर आये हैं एक दो ब्रीफ़ टाइप की पोस्टें पढ़ने मिलीं जिसमें कुछ बड़ों की टिप्पणियों से समझ में आ रहा है कि दिस कुमार इस नॉट एट ऑल विश्‍वास के लायक बिकॉज़ उसके अंदर विष वास करने लगा है आजकल।
एम आय राँग ? डिटेल तो पोस्ट लिखने वाले ब्लागर्स ही बता पायेंगे। बट आय थिंक समथिंग बैड हैज़ हैपेंड देयर। गैट आयडिया प्लीज़।

मंगलवार, 22 मार्च 2011

जिस हमारीवाणी में डॉ. अनवर जमाल, सलीम खान जैसे इस्लामी कट्टरवाद फैलाने वालों को हटाने का माद्दा न हो, उसके मार्गदर्शक मंच में पूरा हिन्दुस्तान जुड़ भी जाये तो क्या है?

जिस हमारीवाणी में डॉ. अनवर जमाल, सलीम खान जैसे इस्लामी कट्टरवाद फैलाने वालों को हटाने का माद्दा न हो,  उसके मार्गदर्शक मंच में पूरा हिन्दुस्तान जुड़ भी जाये तो क्या है ?
कभी फुरसत निकाल कर उनके काँटेदार ब्लागों पर भी नजर मार लिया कीजिये और फिर अंतर्मथन कीजिये खुशदीप जी, दिनेशजी, सतीश सक्सेना जी, समीरलालजी, बवाल जी, गिरीश बिल्लोरे जी, ललितजी, ताऊजी, मासूम जी, गीता जी, महफ़ूज अली जी, अनूप जी, दिव्या ज़ील जी आदि आदि महान ब्लॉगरगण। क्योंकि आप सबने मिलकर जो भी मॉरल पुलिसिंग मेरे अगेन्स्ट की है वो सरासर पार्शलिटी है।
गॉड इज़ नॉट गोईंग टु माफ़ यू ऑल फ़ॉर दिस।

मंगलवार, 15 मार्च 2011

दिनेश जी, हमारीवाणी इज़ अ बेकारीवाणी

ब्लॉगजगत में शुचिता लाने के लिए ही मैनें जस की तस टिप्पणियाँ रखी थीं। मगर अधीरता के चलते कुछ  ब्लॉगर लोग और हमारीवाणी इसे समझ नहीं सके और मुझे हटा दिया। मत घबराइये। जल्द ही एक एग्रीगेटर और आने वाला है जो चिट्ठाजगत जैसा ही होगा और वहाँ किसी ब्लॉगर के साथ इस तरह का सलूक करना किसी के बस में नहीं होगा।
मैने कभी भी किसी को गाली नहीं दी। मैं तो बतलाना चाहता था कि देख लो ब्लॉगरों यहाँ लोगों के दिलों में क्या क्या गंदगी है ? मगर आप लोगों ने वो करने ना दिया।
और अब ये जस्टिफ़िकेशन वाले लेख लिखने की आप लोगों को भी क्या जरूरत है बार बार ? बतलाइये ना दिनेश जी ?
मेरी नजर में तो बिल्कुल बेकार है आप लोगों की यह हमारीवाणी, जिसमें दिन भर कुछ लोग बस हिन्दू मुस्लिम दंगा मचाए रहते हैं और है क्या वहाँ ? शेम शेम।

मंगलवार, 1 मार्च 2011

ये इस्लाम धर्म भी कोई धर्म है लल्लू .... ?

देख रहा हूँ कि कोई एहसास की परतें- समीक्षा  नामक भाई साहब, मुफ़्ती-ए-आज़म ब्लॉगिस्तान मौलाना मोहम्मद महमूद अहमद डॉ. अनवर जमाल साह्ब से बेवजह रगड़ा  मोल लिए हुए हैं। बट व्हाय ?

जबकि आप डॉ. साहब के द्वारा पूछे गए एक भी सवाल का जवाब नहीं दे सकते हैं। दि सवाल्स आर एज़ अंडर :-

1. क्या आप आज के युग में विधवा को सती कर सकते हैं ?
2. क्या आप आज की व्यस्त जिंदगी में तीन टाइम यज्ञ कर सकते हैं ?
3. क्या आप आज अपने बच्चों को वैदिक गुरूकुल में पढ़ाते हैं ?
4. क्या आपके पिताजी 50 वर्ष पूरे करके वानप्रस्थ आश्रम का पालन करते हुए जंगल में जा चुके हैं ?
5. और अगर वह जंगल जाने के लिए तैयार नहीं हैं तो क्या आप उनसे अपने धर्मग्रंथों का पालन करने के लिए कहेंगे ? 

ऎण्ड माय जवाब्स आर एज़ अंडर :-
१. आज के युग में पत्नियाँ विधवा हो कहाँ पाती हैं भैया ? वो तो उसके पहले ही डिवोर्स ले चुकी होती हैं और डिवोर्सी को सती करना हिन्दू धर्म का हिस्सा नहीं है।
 अब आप जमाल बाबू (काहे के डॉ.) से ये पूछें कि क्या वे अपनी बीबी को तुरंत में तलाक देकर उनका हलाला मेरे जैसे किसी मुसलमान से करवा कर इद्दत विद्दत करके उसी शिद्दत से स्वीरकार  करेंगे ?
 2.जमाल बाबू (काहे के डॉ.) से ये पूछें कि क्या वे उनकी लस्त और हौसला पस्त जिंदगी में पाँच टाइम नमाज़ पढ़ सकते हैं ? 
 ३.  क्या जमाल बाबू (काहे के डॉ.) अपने बच्चों (एक से तो ज्यादा ही होंगे) को दारुल उलूम में पढ़ाते हैं ? 
४. क्या जमाल बाबू (काहे के डॉ.) के वालिद साहब (मुसलमानो के बाप को पिता नहीं वालिद कहते हैं अंडर्स्टुड) उनकी इन घटिया और वाहियात हरकतों से घबरा कर ५० क्या २५ साल पूरे करके ही व्हाया रेगिस्तान  भटकते हुए जहन्नुम की रवानगी डाल चुके हैं ?  

५. अरे नही किलर झपाटे, जमाल के वालिद तो हमसे ये कह रहे थे कि जमाल की अक्ल ठिकाने जब तक नहीं आ जाएगी तब तक वो जहन्नुम में नहीं जायेंगे बल्कि जमाल की तीन और वालिदायें लायेंगे और उनसे १२ और जमाल पैदा करेंगे फिर जहन्नुम में जायेंगे क्योंकि आजकल अच्छे मिस्त्री मिलते कहाँ हैं भाई ? हा हा बुरा ना मानो शिवरात्रि है।

गुरुवार, 10 फ़रवरी 2011

अब बतलाइए ? खुशदीप सहगल जी खुद को भू - भू (कुत्ता) बोल रहे हैं और आप लोग गालियाँ मुझे देने वाले हो.................................(किलर झपाटा)

अभी अभी खुशदीप सहगल भाईसाहब की एक बहुत ही मज़ेदार पोस्ट कुर्सी पे बैठा एक कुत्ता...खुशदीप  पढ़ी। मज़ा आ गया मगर आप एक बात बताइए ? अचानक हैडिंग पढ़ने से क्या आभास हो रहा है ? हा हा।  अब मेरे को कुछ मत बोलना आप लोग। मैं सिर्फ़ मज़ाक कर रहा हूँ। खुशदीप भैया, दुष्ट बेनामियों के आने के पहले जल्दी इस इंबैलेंस हैडिंग को ठीक करो नहीं तो, मैं नहीं जानता फ़िर !  हा हा जस्ट जोकिंग सीरियसली मत लेना। ओ.के.

सोमवार, 7 फ़रवरी 2011

हमारी वाणी के नाम खत

प्रिय हमारी वाणी जी,
आपका बहुत बहुत धन्यवाद के आपने मुझे निलंबित कर दिया। मगर मैं तो हिन्दी ब्लॉगिंग को ही लंबित होते देख रहा हूँ। मुझे यह जानकर कतई आश्चर्य नहीं हुआ। क्योंकि मुझे मालूम है कि आपके यहाँ दर्ज ब्लॉगर दर‍असल ब्लॉगर नहीं टिप्पणीबाज़ हैं। हमारे यहाँ ब्लॉग पोस्टों की जगह टिप्पणियों को ज़्यादा तवज्जो दी जाती है। लोगों का पोस्ट पर ध्यान कम और टिप्पणियों पर ज़्यादा होता है। यदि ब्लॉग भी मॉडरेट कर दिया जावे तो ब्लॉग कैसा ? मैनें अपनी किसी पोस्ट में किसी को बुरा नहीं कहा। इससे बुरी बुरी बातें ब्लॉगवाणी और चिट्ठाजगत के ज़माने में हो चुकी हैं। तब निलंबन की बातें न हुईं। मेरा निलंबन तो कर दिया मगर डॉ. अनवर जमाल और उनके जैसे धार्मिक उन्माद फ़ैलाने वालों पर आपके सलाहकार मंडल की निगाह नहीं गई कभी। आपके सलाहकार मंडल में आखिरकार हैं ही कौन ? वही जो दिन भर अपनी पोस्टें लिख लिख कर उन्हें ब्लॉगरों को पढ़ने को मजबूर करते हैं मगर अन्य किसी पोस्टों को कोई ध्यान नहीं दे पाता। आपने कहा है "हमारीवाणी की नीति है कि ऐसे ब्लागों को जिन की पोस्टों में या टिप्पणियों में अश्लील व अपमानजनक भाषा, यौनिक गालियों, आदि का प्रयोग होता है, उन्हें हमारीवाणी का सदस्य बने रहने का अधिकार नहीं है।"
अजी मैं कहता हूँ कि जो हमारी वाणी जमाल जैसे खिलंदडे़ किस्म के लेखकों की दूकान बन गई हो उस पर बने रहना मुझ जैसे यज्ञशील ब्लॉगर की शान के खिलाफ़ है अत: ..............................

और सुनिए यह बात याद रखिए के आप मात्र एक ऎग्रीगेटर हैं सम्पूर्ण ब्लॉगजगत के ठेकेदार नहीं। धन्यवाद।
 

Live in relationship' पूरी तरह सदाचार है , नैतिक है और पुण्य है । हिंदू और मुस्लिम , दोनों समुदाय के प्रबुद्ध लोगों को समान पवित्र मूल्यों की रक्षा के लिए मिलकर इस पुण्यकर्म की प्रशंसा करनी चाहिए -- डॉ. अनवर जमाल

'Live in relationship' पूरी तरह सदाचार है , नैतिक है और पुण्य है । हिंदू और मुस्लिम , दोनों समुदाय के प्रबुद्ध लोगों को समान पवित्र मूल्यों की रक्षा के लिए मिलकर इस पुण्यकर्म की प्रशंसा करनी चाहिए ।

आदम और हव्वा को भविष्य पुराण में आदम और हव्यवती कहा गया है और खास तौर पर हिंदू धार्मिक साहित्य में इन्हें मनु और शतरूपा कहा गया है । इन्हें सन्तानोत्पत्ति की आज्ञा स्वयं परमेश्वर ने दी थी । सारी दुनिया के लोग इन्हीं की सन्तान हैं । हिन्दू और मुसलमानों में विवाह और निकाह की जो परंपरा पाई जाती है वास्तव में वह इन्हीं का अनुसरण है ।और ये सिवा बेवकूफ़ी के कुछ भी नहीं है जो उनके मार्ग में पड़ता है , वह धर्म से भी हटने का पाप करता है। शानदार आधुनिक जीवन शैली की वजह से आज विवाह और निकाह की अधार्मिक परंपरा रोज़ ब रोज़ कमज़ोर पड़ती जा रही है । 'Live in relationship' भी एक ऐसी ही आधुनिक और सुन्दर परंपरा है जिसमें युवक युवतियाँ बिना वैवाहिक संबंध के बिल्कुल पति पत्नी की तरह साथ रहते हैं। यह प्रशंसनीय सुकर्म आज का उच्च शिक्षित युवा वर्ग कर रहा है।
इससे यह स्पष्ट है कि उच्च शिक्षा अपने आप में समाज की समस्याओं का वास्तविक समाधान है बल्कि अगर इसे धर्म से काट दिया जाए तो यह ख़ुद नई नई समस्याओं को जड़मूल से समाप्त कर देती है।
भारत एक धर्म और आध्यात्मिक देश है जहाँ पवित्र सामाजिक मूल्यों का पालन आज भी बहुसंख्या में किया जाता है । 'Live in relationship' पूरी तरह सदाचार है , नैतिक है और पुण्य है । हिंदू और मुस्लिम , दोनों समुदाय के प्रबुद्ध लोगों को समान पवित्र मूल्यों की रक्षा के लिए मिलकर इस पुण्यकर्म की प्रशंसा करनी चाहिए । हम सबका ईश्वर एक है , हमारा खून एक है और हमारे आधारभूत धार्मिक सिद्धांत और मूल्य भी एक ही हैं । कुल मिलाकर हम हम सब एक हैं । इस एकत्व का बोध हमें है । जरूरत है कि अब इस बोध को आम किया जाए और अपने माँ बाप के मार्ग से अलग हटकर किसी और धर्म का पालन किया जाए ।
---डॉ. अनवर जमाल

शनिवार, 5 फ़रवरी 2011

डॊ. अनवर जमाल को सवार हुई पोस्ट लिखने की सनक

प्रिय ब्लॉगर बंधुओं,

बड़े आश्चर्य का विषय है कि हमारे बहुत ही अज़ीज़ मित्र डॉ. जमाल को लगातार पोस्ट लिखने का मीनिया याने कि सनक सवार हो गई है। एक ही दिन में छ: छ: सात सात पोस्ट लिख रहे हैं, बेचारे। हमारीवाणी तो इनकी घर की खेती हो गई है जैसे आजकल। इस्लाम धर्म को मिस्मार होने से बचाने का ठेका आजकल डॉ. साहब को ही मिला हुआ है भाई। सभी हिन्दू , सिक्ख और ईसाई भाइयों से अनुरोध है वे कृपया डॉ. साहब का साथ देते हुए इस्लाम को बतौरे मज़हब स्वीकार कर लें और डॉ. साह्ब को परेशान होने से निजात दिलाएँ। आखिर वो हम सब के दोस्त हुआ करते हैं। क्या हमारा इतना भी फ़र्ज नहीं है उनके प्रति। और तारकेश्वर गिरी जी आप बड़े वो हैं जो हमारे जमाल भाई साहब को इतना परेशान करते रहते हैं। अब बताइए वो गायत्री मंत्र वाली बात बताने की क्या जरूरत थी ? जबकि शादी को दस साल हो चुके हैं। हा हा।

शनिवार, 29 जनवरी 2011

डॉ. अनवर जमाल, कमाल के धार्मिक साहित्यकार है ---- किलर झपाटा

भाइयों और बहनों,
चाहे कोई इस बात को माने या न माने लेकिन मेरा मानना ये है कि डॉ. साहब ब्लॉगजगत के नग हैं। ज़रा उनके ब्लॉग पर लिखी अबाउट मी को देखिए --
"दुनिया बहुत से दार्शनिकों के दर्शन, कवियों की रचनाओं और लोक परंपराओं के समूह को हिन्दू धर्म के नाम से जानती है। मनुष्य की बातें ग़लत हो सकती हैं बल्कि होती हैं। इसलिए उन्हें मेरे कथन पर ऐतराज़ हुआ लेकिन मैं ईश्वर के उन नियमों को धर्म मानता हूं जो ईश्वर की ओर से मनु आदि सच्चे ऋषियों के अन्तःकरण पर अवतरित हुए। ईश्वर के ज्ञान में कभी ग़लती नहीं होती इसलिए धर्म में भी ग़लत बात नहीं हो सकती। ऋषियों का ताल्लुक़ हिन्दुस्तान से होने के कारण मैं उनके धर्म को हिन्दू धर्म कहता हूं। मैं धर्म के उसी सनातन स्वरूप को मानता हूं जो ईश्वरीय है और एक ही मालिक की ओर से हर देश-क़ौम में अलग-अलग काल में प्रकट हुआ। उसमें न कोई कमी कल थी जब उसे सनातन और वैदिक धर्म के नाम से जाना जाता था और न ही कोई कमी आज है जबकि उसे ‘इस्लाम‘ के नाम से जाना जाता है।"
चर्चाशाली मंच, कमेंट्स गार्डन, अहसास की परतें, प्यारी माँ , वेद कुरान और इस्लाम धर्म  जैसे बड़े बड़े ब्लॉग और उनमें किए गए धार्मिक विष्लेषण क्या नहीं बताते धर्म संबंधी गुत्थियों के बारे में। 
यदि आप ठंडे दिमाग से उन्हें पढ़ें तो आपको अहसास हो जाएगा कि इस्लाम से बेहतर कोई मजहब नहीं है और डॉ. साहब से बेहतर कोई लेखक नहीं है। जमाल साहब इस ग्रेट। उनका कोई भी विरोध नहीं कर सकता।
 
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सोमवार, 24 जनवरी 2011

बेनामियों ......... गन्दी टिप्पणियाँ करना छोड़ो

आदरणीय बेनामी भाईयों,
आप सभी से गुजारिश है कि कृपया मेरे ब्लॉग पर आकर गन्दी गन्दी, अश्लील और गालियों वाली टिप्पणियाँ न किया करें । बहुत दुख होता आप लोगों के गिरे हुए चरित्र को देखकर। ऐसा मत कीजिए प्लीज़। ये अच्छी बात नहीं है।

शनिवार, 22 जनवरी 2011

बड़ा जिगरा चाहिए "टिप्पणियों को जस का तस सहने में"

ब्लॉगजगत की मशहूर हस्ती श्री समीरलाल ‘समीर’ को रीकोट करते हुए साहित्य जगत की मशहूर हस्ती श्री ज्ञानरंजन जी ने कहा कि - ‘बड़ा जिगरा चाहिए जड़ से जुड़े रहने में’. बिल्कुल सही बात है यह और समीर जी, जिनकी नॉवेल का अतिसुन्दर विमोचन उनके शहर जबलपुर में हुआ, ने जरूर ही अपने जोरदार अंदाज में  लिखी होगी। काश हमें भी पढ़ने मिलती। मगर ये सम्भव नहीं है। क्योंकि हमसे तो पूरा ब्लॉगजगत ही नाराज है। सब कहते हैं अपने ब्लॉग से गंदी, भद्धी, अश्लील बेनामी टिप्पणियाँ तुरंत हटाओ। मृणाल पाण्डेय जैसी हस्ती को भी मैदाने जंग में आना पड़ गया। वैरी सैड।
लेकिन, आप सब की कसम मैने ये गिरी हरकतें नहीं की हैं। मैने सबकी तारीफ़ में ही पोस्टें लिखी हैं। पढ़ लीजिए सब की सब उठा कर। 
जनाब,  ब्लॉगर का यह फ़र्ज भले ना हो मगर शालीनता के तकाजे पर मॉडरेशन लगाना तो बहुत आसान है.........................

लेकिन लेकिन लेकिन

बड़ा जिगरा चाहिए  "टिप्पणियों को जस का तस सहने में"

शनिवार, 15 जनवरी 2011

ज़ील (दिव्या) को पसंद है अंतर सोहिल की दाढ़ी

प्रिय ब्लॉगर साथियों,
अभी अभी ख़बर मिली है कि डॉ. दिव्या ज़ील को अंतर सोहिल जी की दाढ़ी बहुत प्रिय और गॉर्जियस लगी है और उन्होंने उन्हें, उसे रंगने के कलरिंग एजेंट सजेस्ट किए हैं। इसके पीछे किस तरह का मॉडरेशन है ये तो वही बतलाएँगी किन्तु हमारे ब्लॉगजगत के लिए ऐसे मेल-मिलाप वाली ख़बरें सुखद हैं वरना तो एक दूसरे की बैंड बजाते रहना यहाँ का आम फ़ैशन है।

उसके चेहरे को ओक में भर लूँ
ज़िंदगी को इस तरह पिआ जाएगा

मंगलवार, 11 जनवरी 2011

राज भाटिया जी का एग्रीगेटर और ब्लॉगरों का दर्द

आदरणीय राज भाटिया जी ने ए नया एग्रीगेटर बनाया है "ब्लॉग परिवार"  और सबसे यह अपील की हुई है कि इसे सपोर्ट करें। वक्त का तकाजा तो यही है के उन्हें सपोर्ट किया जाए। क्योंकि उनका एग्रीगेटर बहुत बड़ा काम कर रहा है। कहाँ है समीर लाल जी, अनूप जी,  ताऊजी, फ़ुरसतिया जी, ज्ञान जी, दिनेशरायजी, बवाल भाईजान, गिरीष जी, घुघुती बासुती जी सतीश सक्सेना जी,   महफ़ूज़ भाईजान आदि महानुभाव जो इस दिशा में कोई ठोस कदम उठाएँ। डू समथिंग मैन डू समथिंग।

बुधवार, 5 जनवरी 2011

चिट्ठाजगत के बंद होने से ब्लॉगरों की नींद उड़ी

प्यारे दोस्तों,
कोई माने न माने, लेकिन यह बात सच है कि चिट्ठाजगत के बंद हो जाने से ब्लॉगजगत की हस्तियों की रातों की नींद उड़ गई है। बहुत ही परेशान घूम रहे हैं सब के सब। के अब क्या होगा कालिया ? अब तो पता ही नहीं चलेगा के सबसे हॉट पोस्ट किसकी है, धड़ाधड़ वड़ाधड़ सब बंद। इसीलिए बुजुर्ग लोग कह गए हैं के जादा धड़-धड़ भड़-भड़ ठीक नहीं। मगर हमारे बड़े बड़े ब्लॉगर्स मानते कहाँ हैं\ अपने साथ छोटों को भी बिगाड़ डाला। दे दनादन पोस्टें ले दनादन पोस्टें। अरे भैया थोड़ा ठहर ठहर कर नहीं लिख सकते। ताकि लोगों को दूसरों को पढ़ने भी मिले। अपनी अपनी पढ़वा ली बस। आदमी उसी उसी ब्लॉग पर टिप्पणियाँ कर कर के बोर हो जावे तो हो जावे। इनको  क्या ? ये तो बस। जाने दो हमारे कहने से भी क्या मानेंगे ? पता नहीं यह चिट्ठाजगत जो कि सबका इतना प्यारा था,  कईं गेल्लो ?
हा हा।
वो तो भला हो राज भाटिया जी का जो कि ब्लॉग परिवार नाम का एग्रीगेटर बना कर लोगों का काम चलवाए दे रहे हैं, नहीं तो ना जाने क्या होता ब्लॉगरों का ?