सोमवार, 13 दिसंबर 2010

बंटी चोर ने कबाड़ा किया कई ब्लॉग पहेलियों का.............ताऊ की भी हवा निकाली

प्यारे दोस्तों, 
ताज़ा समाचार यह है कि हिन्दी ब्लॉग जगत के एक प्रकांड चोर "बंटी" ने, आजकल सभी किस्म की ब्लॉग पहेलियों का कबाड़ा कूट के रख दिया है। भाई क्या करता है कि हर एक पहेली का पहले ही उत्तर प्रकाशित कर देता है। ऎसे में पहेलियों की रोचकता ही समाप्त हो जाती है और पहेली पूछने वाला बंटी चोर से रिक्वेस्ट ही करता रह जाता है कि, बंटी भैया प्लीज़ इस पहेली का जवाब इतनी जल्दी मत दीजिए, प्ली............ज़।
हा हा,  मगर चोर तो चोर ही है और वो भी बंटी ??   मानता ही नहीं बताए बिना। हा हा।
मज़े की बात यह है कि आजकल सभी पहेलिए एक नई पहेली खुद ही बूझने में लगे हैं के---
हू द हैल इस दिस " बंटी चोर " ???????????? हा हा हा

ताऊ भाई साहब की पहेलियों की भी इसी वजह से हवा निकली हुई है।
वैसे भी निकलनी ही थी। 
बंटी चोर के ब्लॉग पर किसी बेनामी ने ताऊ को बंदर की औलाद तक कह दिया है। गंदी बात है यह। ऎसा नहीं कहना चाहिए । ठीक है कि आप उनके रामप्यारे, रामप्यारी, झट्का वगैरह को पसंद ना करते हों तो भाई उनके ब्लॉग पर न जाओ। मगर अन्नानिमस बन कर ये सब करना उचित नहीं है। मत भूलो कि वो चिट्ठाजगत में टॉप रेंक पर हैं। उड़न तश्तरी के भी ऊपर। यही तो हिन्दी ब्लॉगजगत की विशेषता है कि जानवरों को हम इतना अधिक प्यार करते हैं कि पशुता को भी ऊँचे स्तर के साहित्य से भी ऊपर मानते हैं। याने सबको बराबर का स्थान मिलता है है यहाँ। ब्लॉग है काहे के लिए ? जिंदगी को आनंद दिलाने के लिए। 
तो क्या ताऊ की बातें जो इतनी मेहनत से बनाते हैं, आप लोगों को खराब लगती हैं ? उसमें आपको आनंद नहीं आता ?
आप बेनामी हैं तो बस ..........कुछ भी कह डालते हैं। मत कीजिए ऐसा।
अरे हाँ तो हम बंटी चोर की बात कर रहे थे और ताऊ में उलझ कर रह गए। अभी इस चोर का सही उद्देश्य किसी को समझ नहीं आया है। आगे क्या और कहाँ तक चोरी होती है, अच्छी चोरी या बुरी चोरी ....... क्या पता ?
पर मजा तो भरपूर आ रहा है।
जय हो।

गुरुवार, 25 नवंबर 2010

लाल-बवाल की जुगलबंदी और ९९ (निन्यान्नवे) का चक्कर

प्यारे दोस्तों,
पिछले दिनों जागरण पर एक यू-ट्यूब न्यूज़ पढ़ रहा था, "एक नौजवान ने दिल्ली की सड़कों पर बवाल काटा"।
मैंने कहा यार ये बवाल किया या हुआ तो सुना था पर ये काटा क्या है ?
झट गूगल सर्च पर हिन्दी में टाइप किया और देखा तो वहाँ पहला सर्च आप्शन निकल के आया :-

!! लाल और बवाल --- जुगलबन्दी !!

पढ़ना शुरू किया तो पढ़ता ही चला गया। वहाँ उड़नतश्तरी वाले  महान ब्लागर समीर लाल जी की फ़ोटो भी थी और उनके साथ ही तस्वीर थी एक काले चश्मे वाले वकील साब की। मालूम पड़ा के ये हैं बवाल भाई। बहुत खूब।

पहले मैंने सोचा के वकील तो बवाल करता ही है इसमें नया क्या है ? लेकिन अध्यन करने पर पता चला के ये तो चार्टद अकांउटेंट और वकील की बहुत ही बेहतरीन जुगल्बंदी की बातों से भारा हुआ ब्लाग है। पिछली ढेर सारी पोस्टें पढ़ीं। भैया मैंने इतनी शायरी पढ़ी है जिंदगी में लेकिन उड़ती उड़ती। पर सच कहूँ ऐसा धमाकेदार स्टाइल कभी नहीं देखा। बापरे ये लाल-और-बवाल क्या चीज हैं यार ? 

दोनों की जुगलबंदी के कमाल ने मुझे इनके प्रति नतमस्तक कर दिया है। अपन तो कैजुअल टाइप के ब्लागर हैं अभी ठीक से समझ में भी नहीं आता के ब्लागिंग करते कैसे हैं ? मगर इनको पढ़कर इंटरेस्ट जाग गया है। लालजी की फ़ोटॊ पर लिंक है उड़नतशतरी का। वहा जाकर उनके लेख वगैरह भी पढ़े। बहुत ऊँची बातें लिखी हैं।
मेरे दद्दू ईंडिया से कुछ किताबें मगाते हैं जैसे कदम्बिनी नवनीत। कभी कभी मैं उनसे लेकर पढ़ता हूँ। लाल जी बिल्कुल वैसी ही हाई हिन्दी  लिखते हैं। और बवाल भाई तो गजब की उर्दू में लिखते हैं। दोनो के जोइंट लेखन पे आदमी पीएचडी तक सकता हैं। 
मगर लाल-बवाल की जुगल्बंदी पर पिछले १६ मई से जैसे गिर्हण लगा हुआ है। लगता है दोनों मे खटपट हो गई है, तभी तो 99 वीं पोस्ट के बाद इस जुगलबंदी पर कोई पोस्ट ही नहीं लिखी गई।
क्या बात है ? क्या इतना उम्दा ब्लाग हमेशा के लिए बंद हो चुका है ?  यदि नहीं तो लाल और बवाल को वापस जुगलबंदी करनी चाहिए और इस 99 के चक्कर से निकल कर सेंचुरी मारना चाहिये। हाँ के ना ? क्यों ब्लागर भाइयों और बहनों ?

समीर लाल जी और बवाल जी के साथ साथ आप सब ब्लागर भाइयों बहनो को नमस्कार ।

बुधवार, 1 सितंबर 2010

रिंग मास्टर फ़ुर्सतिया की कोशिश नाकाम - फिर बकबकाए दिव्या और मिश्राजी

पिछले दो दिनों से दिव्या आँटी और अरविंद मिश्रा अंकल  के बीच ज़बर्दस्त वाक-युद्ध चला बहुत ही घिनी घिनी बातें की गईं। आख़िर रिंग मास्टर अनूपजी फ़ुरसतिया ने दखल दिया तब जाकर दंगल समाप्त हुआ। मगर आज फिर चालू। आदमी औरत की बहस कभी खत्म होती है भला। उलटे घड़े पे पानी भरने का यही अंजाम होता है। बड़े बेकार हैं दोनों जने।

रविवार, 29 अगस्त 2010

किसी ब्लॉगर को चुतिया के, चुतिया नंदन और दिलफ़ेंक छिछोरा कहना बहुत ही अफ़सोसनाक है

किसी ब्लॉगर को चुतिया के, चुतिया नंदन और दिलफ़ेंक छिछोरा कहना बहुत ही अफ़सोसनाक है। देखिए हमारी पिछली पोस्ट पर किसी बेनामी ने कितनी गंदी टिप्पणियाँ की हैं। क्या यहाँ ऐसा ही किया जाता है किसी नए ब्लॉगर के साथ। बहुत शर्म आई हमें जब हमने देखा कि इन टिप्पणियों को पढ़कर श्री सुरेश चिपलूनकर जैसे व्यक्ति को भी यह कहना पड़ा-

"बहुत उम्दा, सार्थक, गहन अध्ययन वाली टिप्पणियाँ पढ़कर इस ब्लॉग पर कदम रखते ही मैं धन्य-धन्य हुआ… :) :) अब इससे ज्यादा धन्य नहीं होना चाहता… :) :)"


हरी नंदन शर्मा जी को चुतिया कहा गया। अभिषेक गुप्ता जी को नीचा देखना पड़ा। महफ़ूज़ जी ने हमारी पहली पोस्ट कमेंट किया था सो हमने जाकर उन्हें उनके ब्लॉग पढ़ा। तभी उनके बारे में मालुम पड़ा। हमें अच्छे लगे तो हमने तारीफ़ कर दी। क्या ये गुनाह है ?  उनको दिलफेंक छिछोरा कहा गया और हमें गाली दी गई।
हमें बेहद अफ़सोस है कि हमारी वजह से उन्हें जबरन अपमानित होना पड़ा।
हमें माफ़ करें आप सभी लोग।

ये देखिए बेनामी ने क्या क्या कहा--

अबे चुतिया के महफूज के चमचे कितना मिला है तुझे महफूज से ये पोस्ट करने के लिए, अबे चमचा गिरी बंद कर और कुछ सार्थक कर । नहीं तो ब्लोगिंग मे महफूज की तरह तू भी बहुत दिंन तक टीक नहीं पायेगा चमचा गिरी और झूठ बोलकर , चल अब मान जा । और हाँ तुझे कमेंट का शोक है लगता है तो ले ये ले ।



चल अब मान जा और अच्छा लिख और अपने महफूज से भी कह देना कि ऐसी हरकतें बंद कर दे और फेक आईडी बनाकर अपनी वाह-वाही करना बंद कर दे , अपने बाप से कह देना अब सच बोलना सिख ले नहीं तो बोलती बंद कर दी जायेगी ।


जलो सालों जलो , महफूज से जलो.


अबे चुतिया नंदन हरी शर्मा तू किस नजर से देख रहा है, तू भी महफूज के बहुत बड़े चमचो मे से है मुझे पता है , । कर चमचा गिरी और कुछ तो आता नहीं तेरे को तो क्या करेगा , चल यही करके लाईट में बना रह ।


महफूज़ जैसे दिलफेंक छिछोरे के भाई लगते हो तुम या कहीं वो तुम्हारा बाप तो नहीं?



शर्म करो बेनामी शर्म करो

उड़नतश्तरी जी एवं सभी अन्य का हमारे ब्लॉग पर आने के लिए शुक्रिया

बुधवार, 25 अगस्त 2010

पहलवान महफ़ूज़ अली और उसका दिल

भाई, हम तो ठहरे महा मट्ठर और ब्लॉग में नए नए। दिमाग कम और शरीर की समझ ज़्यादा। मगर आप लोगों के बीच आ गए तो कहते हैं कि यहाँ पढ़ना भी पड़ता है। अब क्या क्या ? यह अभी कहा नहीं जा सकता। अभी जितना पढ़ा उसमें इस महफ़ूज़ नामक पहलवान ने ख़ासा प्रभावित किया। हम इसे बार बार पहलवान इसलिए कह रहे हैं के यह सिर्फ़ बदन का ही नहीं शब्दों का भी पहलवान मालूम हुआ। क्या क्या बातें दर्ज की हैं भाई अपनी पोस्टों पर। किसी बदन-तराश का यूँ संजीदा होना दिल को छू गया और इस चक्कर आज २०० डिप्स ज़्यादा मारे हमने। अब हमारे शरीर का सारा का सारा हाँग-काँग दर्द कर रहा है। कोई शायराना मलहम बतलाएँ, प्लीज़। 

---जय हिंद

   

रविवार, 15 अगस्त 2010

आज़ादी की सालगिरह मुबारक़ हो दोस्तों

आप सभी को आज़ादी की सालगिरह मुबारक़ हो। खाओ पीओ और मस्त रहो हिन्दुस्तानियों। ओ.के.