गुरुवार, 26 जुलाई 2012

शोक, महाशोक और सुपरशोक

                  आज बहुत दिनों बाद अब क्या बात कर ली जाए ?   ऊब कर ब्लाग छोड़ दिया था। एक्सरसाइज़ करने और कराने में समय निकल गया। तैयारियाँ  ओलंपिक की करानी थी इन पहलवानों को, सो रात दिन आधुनिक अखाड़ों (जिम) में जमे रहे इन दुष्टों के साथ। बेचारे पसीना बहा कर कर तो बहुत पहुँचे हैं लंदन। सुशील वगैरह से उम्मीद तो है क्योंकि बहुत मेहनत करवा दी गई है। खैर अब जो कुछ है वो भगवान के हाथ है, मगर हमारे देश के खिलाड़ियों की वापसी खुशी के साथ होगी तो भला कौन आनंदित नहीं होगा ? एम आय राँग?

शोक :- 
पिछले दिनों थोड़े समय के लिये ब्लाग पर था तो मालुम पड़ा कि मेरे सबसे अजीज दोस्त, और भड़ास परिवार के सम्माननीय डा. रूपेश श्रीवास्तव का विगन ९ मई को आकस्मिक निधन हो गया। बहुत दुख हुआ यार। अरे मुझे तो उनसे लड़ते रहने में ही आनंद मिलता था। बल्कि मार्च के लास्ट वीक में मैं इंडिया में था तो मैंने उनसे मिलने तक का प्रोग्राम बना लिया था। फ़ोन किया तो हँस कर बोले कि "किलर भाई आप मिलो तो मुझसे हाथ जरूर मिलाना, मुझे देखना है कि मेरी उँगलियों के लिगामेंट कैसे रप्चर होते हैं ? मैंने कहा कि "अरे डा. साब मैं तो मजाक कर रहा था तो बोले मेरी नकल करते हुए "आय एम आलसो डूईंग द सेम"। दिवस भाई की किसी पोस्ट या शायद टिप्पणी और अविनाश वाचस्पति जी की पोस्ट से इस दुखद हादसे का पता चला। ऎसा तो कभी भी सोचा नहीं था। भगवान डा. साहब की आत्मा को शांति प्रदान करे। उनके बिना अब ब्लाग लिखने का मजा शायद ही आये। आय एम रियली मिसिंग हिम। रियली, रियली मिसिंग हिम फ़्रैण्ड्स।

महाशोक :-
अब दारा सिंह दादू को मैं याद न करूं, इज़ इट पॉसिबिल ? अरे पागल भर नहीं हुये ये समझ लीजिये। खूब रोये, खूब खूब रोये। मर्द को कभी दर्द नहीं होता। पर उस दिन हो गया। आय काण्ट बिलीव दैट ही इज़ नो मोर। बहुत कुछ लिखना था उनके बारे में मगर सब तो आप पढ़ चुके। और क्या बचा ? मेरे दादू और दारा दादू पक्के दोस्त थे। मेरे दादू के साथ उनकी फ़ाइट देखनी हो तो फ़िल्म लुटेरा में नाव पर हुई कुश्ती देख सकते हैं। माय दादू वास नोन एज़" काला दारासिंह" i.e. किलर दारासिंह विच वास चेन्ज्ड फ़रदर एज़ किलर झपाटा। 
मलखान, मंगोल, एल्डरमैन, फ़ोकस, जिस्टयार्ड, किंगकाँग, स्टोनक्रशर, पाईडपाईपर जैसे अनगिनत फ़्री स्टाइल पहलवानों की भीड़ में एक दारा सिंह दादू ही जो सिर्फ़ रुस्तमे-हिन्द ही नहीं रुस्तमे-ज़माँ (World Champion) थे और जिनके बारे में कहा गया कि
 "दारा जो कभी नहीं हारा"
आय काण्ट राइट मोर अबाउट हिम। परसों विन्दू भैया के घर पर बैठक होगी तभी रुलाई पेट भर कर होगी। संडे लंदन की फ़्लाइट। Alas!

सुपर शोक:-
अब ये भी कोई कम दादा तो थे नहीं, मगर कहलाते काका थे। अरे यार दीज़ फ़ेलोज़ आर नॉट सपोज़ टु डाय। इन जैसे लोगों का जाना अखर जाता है। बहुत अखर जाता है। प्लीज़ डोण्ट गो यू पीपुल। गॉड काइण्डली डोण्ट कॉल दैम। अरे अब क्या कहें ?  वो आँखें बंद करके खोल देना ही तो इनका सब कुछ था। राजेश खन्ना दादा (काका) तुसी क्यों चले गये ?  आनंद का गीत "ज़िंदगी कैसी है पहेली" बारंबार गूँजता है, आपके स्टारडम को सलाम आपके सुपरस्टारडम को सुपर सलाम। बी विथ अस इन अवर मेमोरी काका, बी विथ अस फ़ॉरएवर।