सोमवार, 25 अप्रैल 2011

बिक गई तो फिर न मिलूँगी कभी नहीं कभी नहीं कभी नही............................शरम करो रे कोई

इन दिनों ब्लॉगजगत में ३० अप्रैल २०११ को लेकर बड़ी गहमा गहमी है। अरे हिन्दी ब्लॉगरों बमुश्किल पुरस्कार मिलने की बेला आई है, यार इट्स नॉट अ जोक। डॉ. जमाल तो बेचारे भड़भूँजे की दूकान में जाकर खुद को भुँजवा के भी आ चुके हैं इसी बात पर एण्ड यू ऑल आर ऑल नॉट अवेअर ? वण्डरफ़ुल ! खैर मैं तो जनाब फ़लाँ फ़लानापति और ढमके ढम्कात जी की बात कर रहा हूँ। यस इन दोनों ने एक बहुत ही अमके किस्म की किताब इस आयोजन को देखते हुए सबसे बिना पूछे पब्लिश कर ली है और सबके मुँह में ठूँस ठूँस कर बेच रहे हैं। अरे भैये ये लोग पहले समीर लाल की "देख लूँ तो चलूँ" को तो पचा लें तब न तुम्हारी खरीदेंगे ? अजीरन करवाओगे क्या ? बोथ ऑफ़ यू नॉटी बॉयज़। और ये लोग उस किताब में मेरा नाम छापने के लिये पैसा माँगते थे। अब भाई लोग आप ही बताओ मेरे पास झपाटे के सिवा और है क्या ? हा हा। कैन यू गैस मैंने क्या दिया होगा ? हा हा
 ये चर्चा नहीं जानी पर्चा है।
अरे ज्ञानदत्त जी, हँसिये मत ना मुझे भी हँसी आ जाती है ऐसे में। 
हाँ नहीं तो।

रविवार, 24 अप्रैल 2011

मुझे देखकर खिसक जाती है डॉ. अनवर जमाल की हवा.........................हा हा

ना जाने क्यों ब्लॉगजगत के सबसे बड़े हिन्दू-मुस्लिम दंगाई डॉ. अनवर जमाल की हवा खिसक जाती है मुझे सामने देखकर। मेरी टिप्पणी को वो सब काम छोड़ कर मिटाने आ जाते हैं। मुझे भाभी जी (मिसेज अन्वर जमाल) ने बतलाया कि किलर भाईजान, आप इन्हें क्यों इतना सताते हो बताइये आजकल कब्ज हो गई है इनको। मैने पूछा अरे इसका मेरे सताने से क्या संबंध ? वे बोलीं संबंध कैसे नहीं दिनभर नैट पर बैठकर उल्टी सीधी वाहियात पोस्टें लिखते रहते हैं और लैटरिन जाते ही फ़ौरन बाहर आ जाते हैं कि कहीं उस पोस्ट पर किलर झपाटे ने कोई टिप्पणी तो नहीं कर दी वरना लोग खिल्ली उड़ायेंगे इनकी बेवकूफ़ाना काबिलियत पर। आपकी टिप्पणी मिटा मिटा कर हाथ में छाले पड़ गये हैं इनके। हीही ।
अब आप लोग ही बताइये यार इसमें मेरा क्या कसूर है। मैने तो कल इनके हैप्पी बड्डे पर जो बधाई दी थी उसे भी इन्होंने मिटा दिया। पुराने बुजुर्ग कहते हैं कि किलर झपाटे की बधाई हमेशा स्वीकार लेनी चाहिये नहीं तो साल पर लोग गरियाते रहते हैं। अब आगे साल भर इनका भगवान, सॉरी ये तो अल्ला मियाँ वाले हैं ना, तो अल्लाह ही मालिक है। हा हा। 
एक नई कहावत नाजिल हुई अभी अभी मेरे ऊपर :-
अल्ला रखे खयाल तो गधा भी डॉ. जमाल

और तो और मुझे अपने ब्लॉगों को फ़ालो करने से भी ब्लॉक कर रखा है।
 हा हा खतम हो गये जमाल बाबू हार गया मुसलमान ।


रविवार, 17 अप्रैल 2011

क़ुरबानी का बकरा सलीम ख़ान और उसके प्यारे इब्राहीम के गप्पोड़ी खाब

एक बार पैग़म्बर इब्राहीम (अ.) के ख़्वाब में आया कि तुम अपनी सबसे ज्यादा अज़ीज़ चीज़ अल्लाह की राह में क़ुर्बान करो तो उन्होंने तमाम चीज़े दान की, बहुत सारे जानवर अल्लाह के राह में क़ुर्बान किये. मगर उन्हें लगातार ख़्वाब आते रहे और वो क़ुर्बान करते रहे. फ़िर उन्होंने सोचा कि मुझे तो सबसे ज्यादा अज़ीज़ मेरा बेटा (इस्माईल अलैहिस्सलाम) ही है.

तो उन्होंने इसका तज़किरा इस्माईल (अ.) से किया तो उन्होंने कहा कि जब अल्लाह हुक़म है तो आप उस पर ज़रूर अम्ल में लायें, मैं तैयार हूँ.

इब्राहीम (अ.) ने फ़िर अल्लाह के हुक्म के मुताबिक़ अपने प्यारे और सबसे अज़ीज़ बेटे इस्माईल (अ.) को  क़ुरबानी के नियत से उन पर छुरी चलाई. लेकिन छुरी को अल्लाह का हुक्म हुआ कि वह उनके प्यारे पैग़म्बर का बल भी बांका न करे. इस तरह स्वर्ग से एक दुम्बा आया जो इस्माईल (अ.) की जगह पर आ गया और वह कुर्बान हुआ. मैं बताता चलूँ कि इब्राहीम (अ.) की इस अदा हो और फ़रमाबरदारी को इतना पसंद फ़रमाया कि क़यामत तक इसे मुसलमानों पर फ़र्ज़ कर दिया. जिसे मुस्लिम लोग बकरा-ईद के रूप में कुर्बानी देकर मानते हैं.

अब सुनो भैया लोगों,
शंकर भगवान ने गणेश जी की गर्दन काटकर हाथी की गर्दन जोड़ी तो  सलीम खान जो कि ठीक से अपने दिमाग का स्क्रू तक नहीं जोड़ पाते कहते हैं कि ये गप्प है ऐसा हो नहीं सकता। 

दूसरी तरफ़ इनके अल्ला मियाँ जिनकी एक ठो ढंग की तस्वीर तक इनके पास है नहीं, वह छुरी को जिसमें जान भी नहीं है को हुक्म देते हैं कि वह उनके प्यारे पैग़म्बर का बल भी बांका न करे और हिन्दुओं के स्वर्ग से एक दुम्बा भेजते हैं (क्योंकि इनके मुसलमानों में जन्नत वन्नत तो होती ही नहीं है ना हा हा) जो इस्माईल (अ.) की जगह पर आ गया और वह कुर्बान हुआ.हा हा। सब का सब आटोमेटिक ? वैरी स्ट्रेंज। दिल्लगी बहुत है इस्लाम में। हा हा।
अरे सीधे क्यों नहीं कहते कि यार के उस दिन मटन खाने का बहाना चाहिये होता है और कुछ नहीं। कुर्बानी वुरबानी का फ़ालतू बहाना क्यों करना है के नहीं।
एक बात बताऊँ सलीम, जमाल और बुल्ले (हरीश) मियाँ,  आपके अल्ला मियाँ जिस दिन आपकी कुर्बानी सच में कुबूल फ़रमा गये और एक आध दुम्बा भी उन्होंने अपने हलक में उतार लिया ना तो आप लोग ही सब के सब अपने अपने दुम्बे लेकर भाग छूटोगे ये कहके कि आज से अल्ला मियाँ ने मुसलमानों पर ये फ़र्ज़ आयद किया कि अब वे दुम्बे की जगह अपनी औकात के मुताबिक मच्छरों की कुरबानियाँ दिया करें।

हा हा हा।

शनिवार, 9 अप्रैल 2011

कुमार विष-वास और जबलपुर वालों में ठनी

ओय पहलवानों संभल जाओ रे,
ये कुश्ती तो लगता है नये रंग दिखायेगी। एक हफ़ते के मुम्बई टूर के बाद हाँगकाँग लौटा तो ब्लॉगवुड कुछ बदला बदला दिखा। जमाल डाक्टर और सलीम को हमारी वाणी के झटके वगैरह के बीच आज की ताजा खबर  ये मिली के हरदिल अजीज कुम्मू भैया याने कुमार विश्‍वास बड़ी मुश्किल से इंडिया प्रवास किया और वो एम.पी. के जबलपुर। भाई साहब की पुरानी आदत है हंगामा करने की और शायद वहाँ भी वही कर आये हैं एक दो ब्रीफ़ टाइप की पोस्टें पढ़ने मिलीं जिसमें कुछ बड़ों की टिप्पणियों से समझ में आ रहा है कि दिस कुमार इस नॉट एट ऑल विश्‍वास के लायक बिकॉज़ उसके अंदर विष वास करने लगा है आजकल।
एम आय राँग ? डिटेल तो पोस्ट लिखने वाले ब्लागर्स ही बता पायेंगे। बट आय थिंक समथिंग बैड हैज़ हैपेंड देयर। गैट आयडिया प्लीज़।