रविवार, 29 अगस्त 2010

किसी ब्लॉगर को चुतिया के, चुतिया नंदन और दिलफ़ेंक छिछोरा कहना बहुत ही अफ़सोसनाक है

किसी ब्लॉगर को चुतिया के, चुतिया नंदन और दिलफ़ेंक छिछोरा कहना बहुत ही अफ़सोसनाक है। देखिए हमारी पिछली पोस्ट पर किसी बेनामी ने कितनी गंदी टिप्पणियाँ की हैं। क्या यहाँ ऐसा ही किया जाता है किसी नए ब्लॉगर के साथ। बहुत शर्म आई हमें जब हमने देखा कि इन टिप्पणियों को पढ़कर श्री सुरेश चिपलूनकर जैसे व्यक्ति को भी यह कहना पड़ा-

"बहुत उम्दा, सार्थक, गहन अध्ययन वाली टिप्पणियाँ पढ़कर इस ब्लॉग पर कदम रखते ही मैं धन्य-धन्य हुआ… :) :) अब इससे ज्यादा धन्य नहीं होना चाहता… :) :)"


हरी नंदन शर्मा जी को चुतिया कहा गया। अभिषेक गुप्ता जी को नीचा देखना पड़ा। महफ़ूज़ जी ने हमारी पहली पोस्ट कमेंट किया था सो हमने जाकर उन्हें उनके ब्लॉग पढ़ा। तभी उनके बारे में मालुम पड़ा। हमें अच्छे लगे तो हमने तारीफ़ कर दी। क्या ये गुनाह है ?  उनको दिलफेंक छिछोरा कहा गया और हमें गाली दी गई।
हमें बेहद अफ़सोस है कि हमारी वजह से उन्हें जबरन अपमानित होना पड़ा।
हमें माफ़ करें आप सभी लोग।

ये देखिए बेनामी ने क्या क्या कहा--

अबे चुतिया के महफूज के चमचे कितना मिला है तुझे महफूज से ये पोस्ट करने के लिए, अबे चमचा गिरी बंद कर और कुछ सार्थक कर । नहीं तो ब्लोगिंग मे महफूज की तरह तू भी बहुत दिंन तक टीक नहीं पायेगा चमचा गिरी और झूठ बोलकर , चल अब मान जा । और हाँ तुझे कमेंट का शोक है लगता है तो ले ये ले ।



चल अब मान जा और अच्छा लिख और अपने महफूज से भी कह देना कि ऐसी हरकतें बंद कर दे और फेक आईडी बनाकर अपनी वाह-वाही करना बंद कर दे , अपने बाप से कह देना अब सच बोलना सिख ले नहीं तो बोलती बंद कर दी जायेगी ।


जलो सालों जलो , महफूज से जलो.


अबे चुतिया नंदन हरी शर्मा तू किस नजर से देख रहा है, तू भी महफूज के बहुत बड़े चमचो मे से है मुझे पता है , । कर चमचा गिरी और कुछ तो आता नहीं तेरे को तो क्या करेगा , चल यही करके लाईट में बना रह ।


महफूज़ जैसे दिलफेंक छिछोरे के भाई लगते हो तुम या कहीं वो तुम्हारा बाप तो नहीं?



शर्म करो बेनामी शर्म करो

उड़नतश्तरी जी एवं सभी अन्य का हमारे ब्लॉग पर आने के लिए शुक्रिया

बुधवार, 25 अगस्त 2010

पहलवान महफ़ूज़ अली और उसका दिल

भाई, हम तो ठहरे महा मट्ठर और ब्लॉग में नए नए। दिमाग कम और शरीर की समझ ज़्यादा। मगर आप लोगों के बीच आ गए तो कहते हैं कि यहाँ पढ़ना भी पड़ता है। अब क्या क्या ? यह अभी कहा नहीं जा सकता। अभी जितना पढ़ा उसमें इस महफ़ूज़ नामक पहलवान ने ख़ासा प्रभावित किया। हम इसे बार बार पहलवान इसलिए कह रहे हैं के यह सिर्फ़ बदन का ही नहीं शब्दों का भी पहलवान मालूम हुआ। क्या क्या बातें दर्ज की हैं भाई अपनी पोस्टों पर। किसी बदन-तराश का यूँ संजीदा होना दिल को छू गया और इस चक्कर आज २०० डिप्स ज़्यादा मारे हमने। अब हमारे शरीर का सारा का सारा हाँग-काँग दर्द कर रहा है। कोई शायराना मलहम बतलाएँ, प्लीज़। 

---जय हिंद

   

रविवार, 15 अगस्त 2010

आज़ादी की सालगिरह मुबारक़ हो दोस्तों

आप सभी को आज़ादी की सालगिरह मुबारक़ हो। खाओ पीओ और मस्त रहो हिन्दुस्तानियों। ओ.के.